Oct 3, 2016

बहुत दिन बीते ...

जुलाई 2009 की 26 तारीख को बीते लंबा समय गुजर गया। 'हिन्दी सबके लिए' के सफर का आठवाँ साल शुरू हो गया । लिखना पढ़ना काफी कम हो गया। हिन्दी के नाम पर तकनीकी स्तर पर भी लगभग स्थिरता छाई है। मुझे नहीं लग रहा है कि कहीं कुछ नया हो रहा है। अब हमें इनस्क्रिप्ट कुंजी पटल पर अधिक ध्यान देना चाहिए। जो नए हैं और हिन्दी टाइपिंग सीखना चाहते हैं उन्हें इनस्क्रिप्ट पर सीखना चाहिए, तभी हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं का का कुछ भला हो सकता है। 
भारतीय भाषाओं के मशीनी अनुवाद और आवाज से पाठ यानी स्पीच टू टेक्स्ट पर ठोस काम होना चाहिए। हिन्दी या देवनागरी में प्रोग्रामिंग की पूछ तो शायद ही हो मगर वर्तमान उपलब्ध साधनों को कैसे भारतीय भाषाओं के प्रयोग के लिए और बेहतर बनाया जाए इस पर चिंतन होना चाहिए।
संवैधानिक स्तर पर अनुच्छेद 351 हिन्दी को जन-जन की भाषा बनाने का पक्षधर है और वह हिन्दी हिंगलिश कदापि नहीं हो सकती है। संविधान हिन्दी में अङ्ग्रेज़ी शब्दों के घालमेल की इजाज़त नहीं देता। यदि भाषाओं के मामले में कुछ और समय राजनीति चली तो कोई भी भारतीय भाषा जिंदा नहीं बचेगी। अब समय आ गया है जब भारतीय भाषाओं पर जानबूझकर अँग्रेजी लादने को अपराध घोषित किया जाए।  
हमें अपनी भाषाओं के मामले में अब संभलना ही होगा। भारतीय भाषाओं को नौकरी से अँग्रेजी की तरह जोड़े बिना जनता की मानसिकता को बदलना संभव नहीं है।
-अजय