उनसे परिचय तो नवम्बर 2006 में फोन पर हो गया था मगर मुलाक़ात हुई जनवरी 2008 में। उनके व्यवहार में अजीब सी सादगी मगर बातों में थोड़ा सा रोष झलकता था। उन्हें शायद सबसे अधिक गुस्सा स्वयं पर आता था। अक्सर मन में कहीं गहरी उदासी को छुपाए एक दुबला-पतला सा व्यक्ति जो दिल का रोग भी गले लगा चुका था जमाने भर को ललकारने में पल भर की भी देर नहीं करता था। उस व्यक्ति के प्रति एक अजीब सी श्रद्धा मेरे मन में जगी। न जाने क्यों मुझे उनका चिडचिडापन अच्छा लगने लगा और आज श्री हरिदास चट्टोपाध्याय से मिले दो वर्ष से अधिक गुज़र जाने पर भी ऐसा लगता है कि कल ही तो उनसे मुलाक़ात हुई थी।
आज श्री हरिदास चट्टोपाध्याय सेवानिवृत हो रहे हैं, उन्होंने लंबे समय तक हिंदी की निस्वार्थ सेवा की है और पूरे दल-बल के साथ की है। उनके पोर्टब्लेयर नराकास के सदस्य सचिव के रूप में किए गए प्रयास सदैव याद किए जाएंगे। उन्होंने पोर्टब्लेयर नराकास को देश की पहली ई-नराकास होने का गौरव दिलाया। उनके सभी सदस्य कार्यालयों को जाने वाले पत्र पहले ई-मेल से पहुँचते थे और डाकखाने की बारी बहुत बाद में आती थी। उनकी सेवानिवृति के अवसर पर हिंदी सबके लिए परिवार की ओर से उनके सदैव हिंदी के योद्धा बने रहने, स्वस्थ, शांतिमय सुखद एवं सक्रिय जीवन हेतु ढ़ेर सारी शुभकामनाएं।
-अजय मलिक
आज श्री हरिदास चट्टोपाध्याय सेवानिवृत हो रहे हैं, उन्होंने लंबे समय तक हिंदी की निस्वार्थ सेवा की है और पूरे दल-बल के साथ की है। उनके पोर्टब्लेयर नराकास के सदस्य सचिव के रूप में किए गए प्रयास सदैव याद किए जाएंगे। उन्होंने पोर्टब्लेयर नराकास को देश की पहली ई-नराकास होने का गौरव दिलाया। उनके सभी सदस्य कार्यालयों को जाने वाले पत्र पहले ई-मेल से पहुँचते थे और डाकखाने की बारी बहुत बाद में आती थी। उनकी सेवानिवृति के अवसर पर हिंदी सबके लिए परिवार की ओर से उनके सदैव हिंदी के योद्धा बने रहने, स्वस्थ, शांतिमय सुखद एवं सक्रिय जीवन हेतु ढ़ेर सारी शुभकामनाएं।
-अजय मलिक