मैं
नदी की ओर
जाता हूँ, नहाता हूँ,
उसमें घर बनाता हूँ
और नदी को
खा जाता हूँ
नदी की ओर
जाता हूँ, नहाता हूँ,
उसमें घर बनाता हूँ
और नदी को
खा जाता हूँ
लोग
गाँव के घर से
शहर जाते हैं
महल बनाते हैं
झोपड़ी में जीते हैं
और सड़क पर
मर जाते हैं
गाँव के घर से
शहर जाते हैं
महल बनाते हैं
झोपड़ी में जीते हैं
और सड़क पर
मर जाते हैं
शहर
गाँव की ओर
लपकते हैं
लहलहाते खेत
पलकें झपकते ही
पथरा जाते हैं
गाँव की ओर
लपकते हैं
लहलहाते खेत
पलकें झपकते ही
पथरा जाते हैं
-अजय मलिक (c)
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