(1)
रूठे हुए सब
खेत और खलिहान अपने
चल लौटता हूँ गाँव अपने
(2)
अच्छा हुआ
जो छिन गए
सब खेत अपने
न आँधियों के डर
न ओलों के सपने
अजय मलिक (c)
रूठे हुए सब
खेत और खलिहान अपने
चल लौटता हूँ गाँव अपने
(2)
अच्छा हुआ
जो छिन गए
सब खेत अपने
न आँधियों के डर
न ओलों के सपने
अजय मलिक (c)
No comments:
Post a Comment