Apr 27, 2020

खेत पर दो क्षणिकाएँ

(1)

रूठे हुए सब
खेत और खलिहान अपने
चल लौटता हूँ गाँव अपने

(2)

अच्छा हुआ
जो छिन गए
सब खेत अपने
न आँधियों के डर
न ओलों के सपने

अजय मलिक (c)

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