Feb 24, 2013

भला फिर नंगपन क्या है.......अशोक अग्रवाल

(डॉ कुँअर बेचैन की फेसबुक दीवार पर अशोक अग्रवाल की एक लाज़वाब ग़ज़ल मिली। आप भी इसका लुत्फ उठाएँ । साभार पेश है )
 
हुई है जब से शादी......इक अजब आसेब तारी है
मुसलसल खौफ रहता है , मुसलसल बेकरारी है

कसम से इक निवाला....कंठ से नीचे नहीं उतरा
सुना जब लौट के......मैके से आने को बीमारी है

मरा जब लग गया पानी पे कैसे.........तैरने देखो
यकीनन आदमी की ज़िन्दगी पर...सांस भारी है

नहीं मस्जिद में करते दंडवत मालूम है लेकिन
रुकू में जब गए........पीछे किसी ने लात मारी है

खुदा की देन कह कर...इतने बच्चे कर दिए पैदा
करानी पड़ गयी....घर की अलग मर्दमशुमारी है

तलफ़्फ़ुस,गुफ्तगू,तर्ज-ए-बयानी सब के सब शीरीं
ज़ुबान-ए-यार है.......या कारोबार-ए-खांडसारी है

ये बालिश्तों से घट कर उँगलियों से नप रहे कपड़े
भला फिर नंगपन क्या है.......अगर ये पर्दादारी है

हमारे शहर की सड़कों पे.....चलते हैं तो लगता है
पहाड़ों की ढलानों पर............अभी भूकंप जारी है

-अशोक अग्रवाल

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