Feb 16, 2013

ग़ज़ल मेरी मुझे तेरी ज़ुबानी अच्छी लगती है- शायर अशोक मिज़ाज बद्र

(फेस बुक पर शायर अशोक मिज़ाज बद्र की यह ग़ज़ल जो मुझे बहुत पसंद आई, यहाँ साभार प्रस्तुत है - अ. म.)


बहुत से मोड़ हों जिसमें कहानी अच्छी लगती है
निशानी छोड़ जाए वो जवानी अच्छी लगती है

सुनाऊं कौन से किरदार बच्चों को कि अब उनको
न राजा अच्छा लगता है न रानी अच्छी लगती है

खुदा से या सनम से या किसी पत्थर की मूरत से
मुहब्बत हो अगर तो ज़िंदगानी अच्छी लगती है

पुरानी ये कहावत है सुनो सब की करो मन की
खुद अपने दिल पे खुद की हुक्मरानी अच्छी लगती है

ग़ज़ल जैसी तेरी सूरत ग़ज़ल जैसी तेरी सीरत
ग़ज़ल जैसी तेरी सादा बयानी अच्छी लगती है

गुज़ारो साठ सत्तर साल मैदाने अदब में फिर
क़लम के ज़ोर से निकली कहानी अच्छी लगती है

मैं शायर हूँ ग़ज़ल कहने का मुझको शौक़ है लेकिन
ग़ज़ल मेरी मुझे तेरी ज़ुबानी अच्छी लगती है

-शायर अशोक मिज़ाज बद्र

6 comments:

  1. आपकी पोस्ट की चर्चा 17- 02- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है कृपया पधारें ।

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  2. धन्यवाद अरुण जी,
    मद्रास से गुड़गाँव आना तो फिलहाल कठिन है।

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  4. खुदा से सनम से या कि‍सी पत्‍थर की मूरत से
    मोहब्‍बत हो तो जिंदगानी अच्‍छी लगती है...गजब की गजल है..

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  5. बहुत सुन्दर "

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