एक मित्र ने कहा- "सहयोग कीजिए।"
मुझसे सहयोग से अधिक असहयोग की अपेक्षा की जाती है।
मद्रास में शायद असहयोग का अधिक महत्व है। मुझसे सहयोग मांगने का मन बहुत कम लोगों का होता है।
मैंने पूछा- " क्या सहयोग अपेक्षित है?"
मित्र ने कहा-" जरा, एक पचास का नोट निकालिए।"
मेरे पचास देने से पहले ही वे "किस्सा" थमाकर चले गए। बोले - "पचास कल ले लूँगा।"
बेहद अच्छी साज़सज्जा के साथ बहुत अच्छे कागज पर छापा गया यह 200 पृष्ठ का सुंदर कहानी संग्रह मन को छू गया। यकीन मानिए, मित्रवर को पचास दे चुका हूँ। किस्सा अगर आपको मिल जाए तो जरूर पढ़िए। सहयोग राशि मात्र पचास रुपए।
प्रकाशक: सुधा स्मृति ट्रस्ट, भागलपुर -812001
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