(प्रस्तुत है -डॉ कुँअर बेचैन का एक गीत, फेसबुक से साभार )
मैं नदी की इक लहर हूँ
तुम नदी के स्वच्छ तट हो
सो रहा हूँ किन्तु मेरे
स्वप्न में तुम जग रहे हो।
बहुत प्यारे लग रहे हो॥
और यह मुझ पर बरसता
नेह वाला मेह मादक
किन्तु तुम डगमग पगों में
एक संयत पग रहे हो।
बहुत प्यारे लग रहे हो॥
कब न जाने आऊँगा मैं
यह ज़रा सी बात कहने
यह कि तुम मन की अंगूठी के
अनूठे नग रहे हो ।
बहुत प्यारे लग रहे हो॥
- कुँअर
बेचैन-
( लौट
आए गीत के दिन' नामक
गीत संग्रह से )
बहुत
प्यारे लग रहे हो।
ठग
नहीं हो, किन्तु
तुम ही
हर
नज़र को ठग रहे हो ।
बहुत
प्यारे लग रहे हो ॥
दूर
रहकर भी निकट हो
प्यास
मैं, तुम
तृप्ति-घट हो मैं नदी की इक लहर हूँ
तुम नदी के स्वच्छ तट हो
सो रहा हूँ किन्तु मेरे
स्वप्न में तुम जग रहे हो।
बहुत प्यारे लग रहे हो॥
देह
मादक, नेह
मादक
नेह
का मन-गेह मादक और यह मुझ पर बरसता
नेह वाला मेह मादक
किन्तु तुम डगमग पगों में
एक संयत पग रहे हो।
बहुत प्यारे लग रहे हो॥
अंग
ही हैं सुघर गहने
हो
बदन पर जिन्हें पहने कब न जाने आऊँगा मैं
यह ज़रा सी बात कहने
यह कि तुम मन की अंगूठी के
अनूठे नग रहे हो ।
बहुत प्यारे लग रहे हो॥
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