(फेसबुक से साभार )
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आज 'विश्व महिला दिवस' पर एक घटना, जो आज ही व्यक्तिगत रूप से मेरे साथ घटित हुई या यूं कहिए कि इस घटना
का जानकार भी मैं ही हूँ, आप मित्रों से साझा करना चाहता हूँ। शायद इस घटना को जानने के बाद आज
मनाया जा रहा ' विश्व महिला दिवस' सिर्फ एक दिवस मात्र लगने लगेगा।
हुआ यूं कि आज जब मैं अपने कॉलेज से वापस ऑटो मे आ रहा था, तो उस ऑटो मे लगभग
९-१० वर्ष की एक बच्ची भी बैठी थी और उसके कंधो पर एक भरी भरकम बेग था। यानि कि वो
अपने स्कूल से छुट्टी होने पर वापस आ रही थी। पहले मैंने सोचा कि इस बच्ची (रिया)
के साथ इसकी माँ या पिता दोनों मे से कोई साथ होगा। परंतु मुझे कोई उसके साथ वाला
नहीं दिखा वो मेरे बिलकुल पास ही बैठी थी और कुछ डरी और सहमी से वो मुझे लगी।
मैंने बच्ची से पूछा बेटा आपके पापा या मम्मी कहाँ है? उसने कुछ डरे से
स्वर मे कहा कि "पापा तो ड्यूटि और मम्मी घर पर हैं।" मैंने फिर पूछा कि
"आपको स्कूल से आज कोई लेने नहीं आया?"
उसे कहा अंकल जी मैं रोज ऐसे ही स्कूल से वापस
आती हूँ अकेले..." मैं सुनकर हतप्रभ रह गया। फिर मैंने पूछा कि बेटा मम्मी
लेने नहीं आती....??? इस प्रश्न को पूछकर मैं खुद बहुत पछताया और मन ही मन सोचा कि आज जो
महिला दिवस मनाया जा रहा है, वो केवल एक दिखावा सा लगता है। और उस कडवे सच को सुनने के बाद यह बात
पुष्ट हो जाती है कि आज महिलाओ के शोषण मे पुरुष से जायदा खुद स्त्रियाँ जिम्मेदार
हैं। और इसका प्रारम्भ घर से ही होता है।
उस बच्ची ने कहा, "अंकल! मम्मी मेरे बड़े भाई को स्कूल लेने जाती हैं और जो टाइम मेरा
छुट्टी होने का है वो उसका भी है। मम्मी कहती है कि तू खुद भी जा आ सकती है भाई को
लेने जाना इसलिए ज़रूरी है क्यूंकी वो तेरा भाई है अकेला भाई..... मम्मी मुझे रोज 10 रुपए देती हैं 5 आने के लिए और 5 जाने के लिए। और ये
कहते कहते उसके आंखे भीग गयी। और मेरी भी...... (और इस बच्ची के विषय मे एक
जानकारी और भी चोंका देती है कि उस बच्ची के कहें अनुसार उसके पापा इंजीनियर और
मम्मी प्राइमरी स्कूल मे टीचर है)
अब आप मुझे बताये कि क्या ऐसे सशक्त होगी हमारी बच्चियाँ।? क्या फायदा है इस
दिवस को मनाने की और बड़ी-बड़ी बातें करने की।?
क्या ज़रूरत है महिलासशक्तिकरण विषय पर बड़े बड़े
सेमिनार करने और बहस करने की? आखिर कुछ परिणाम तो निकले॥ आज हमारे घरों मे ही बच्चियाँ सुरक्षित
महसूस नहीं करती और खुद को शोषित महसूस करती हैं। क्यू???? मेरा सवाल उन तमाम
लोगों से जो आज कहीं न कहीं आज महिला दिवस पर बड़े-बड़े प्रोग्राम मे गए होंगे और
बड़े-बड़े व्याखान सुने भी होंगे और सुनाये भी होंगे। पुरुषों की तो बात ही छोड़
दीजिये यह कितना विरोधाभास है कि जो नारी आज अपने सशक्तिकरण की बात कर रही है वो
किसी न किसी रूप मे नारी के शोषण करने मे खुद भी जिम्मेदार है। ऐसे कई सत्य उदाहरण
मैं व्यक्तिगत रूप से जनता हूँ। एक छोटा सा उदाहरण जब किसी घर मे एक नौकरनी (मेड)
काम करने के लिए आती है, तो स्वम उस घर की मालकिन ही उसके साथ बुरा व्यवहार करती हैं। और आज की
जो घटना मेरे साथ साथ हुई वो कोई नयी नहीं हैं। न जाने ऐसी कई बच्चियाँ हर दिन घर
से अकेली जाती हैं और न जाने ऐसी कितनी ही दुर्भाग्य बच्चियाँ होंगी जो अपने घर ही
नहीं पहुँच पाती हैं, यानि उनका अपहरण कर लिया जाता है।
जहां तक मेरा अपना मानना है वो यह है कि हम पहले खुद अपने घर से ही
नारी सशक्तिकरण की पहल करें। हम अपनी बच्चियों के मन से यह भेद मिटाने का प्रयास
करें कि वो किसी भी रूप मे अपने बड़े या छोटे भाई से कम है। कहते हैं कि माँ सबसे
पहली शिक्षिका होती है, ठीक बात है। परंतु क्या एक माँ अपने पुत्र को यह शिक्षा कभी देती है
कि "स्त्रियॉं का सम्मान करना चाहिय और अगर उसके कोई छोटी या बड़ी बहन है, तो उसे पूरा सम्मान
दे उससे प्यार करें और यह समझाये कि "बेटा ! जैसे मैं तेरी माँ हूँ और यह
तेरी बहन है, उसी तरह बेटा दूसरों की माँ को माँ मानो और बहन को बहन। और बेटा
जिंदगी मे कभी किसी स्त्री के अपमान करने से पहले मुझे याद करना कि मेरा भी कोई
अपमान ऐसे ही कर सकता है जैसे तू किसी और कि माँ या बहन की करेगा।" हमारा
समाज मे ऐसी कितनी माएं हैं जो अपने शादी के बाद अपने पुत्र को यह समझाती या कहती
है कि "बेटा! अपनी पत्नी को सम्मान देना,
उसे कभी कोई तकलीफ देना और हो सकें को उसे यह कभी
महसूस नहीं होने देना कि को पराय घर मे आई है। " बड़ी ही विडम्बना है कि
हमारे समाज मे ऐसी माँ भी नहीं है या इनकी संख्या बहुत कम है, अपनी बेटियों को
ससुराल मे जाकर सबका सम्मान करना सिखाये और यह भी समझाने की कोशिश करें कि
"बेटी! अपने प्यार और सम्मान से तू उस घर मे और उस घर के सभी लोगों के दिलों
मे स्थान बना सकती है, कभी वहाँ जाकर किसी का दिल मत दुखाना और अपनी तरफ से उन्हे खुश रखने
का भरशक प्रयास करना। "
अगर इन बातों को निष्पक्षता से सोचा जाए तो यह आज के परिवेश को देखते
हुए बिलकुल सटीक है। एक कटु सत्य यह भी है,
जो मैंने क्या कहीं न कहीं हम सभी ने महसूस भी
किया होगा, (हो सकता है मेरी यह बात कटु लगे और कोई सहमत भी न हो खैर कोई बात
नहीं........ ) कि जो स्त्रियाँ समाज मे एक सम्मानित पद पर है या यूं कहिए कि वो
पूर्ण और हर प्रकार से सशक्त हैं, क्या वो अपनी जिम्मेदारियों को सही मायनों मे समझ रही हैं या निभाने
का सही प्रयास कर रही। क्या सड़क पर तोड़ती पत्थर, फटे हाल बोझा उठाती मजदुरनी, पीठ पर बच्चे बांध
कर फावड़ा चलाती महिला, आपके घरों मे काम करने वाली महिला जिसके पास शायद तन ढकने के लिए पूरे
कपड़े भी न हो, स्कूल जाती वो बच्ची जिसके पैरों मे चप्पल नहीं, के बारे मे भी कभी
बात की गयी है या की जा रही है। या इनके स्शक्तिकरण की बात भी कभी की जाती है।
हमारे समाज की सभी महिलाएं स्त्री के शोषण के जिम्मेदार केवल पुरुषों को ही बताती
है और जो वो खुद महिला होने के बाद भी महिला का शोषण करती है उस पर कभी कोई महिला
नहीं बोलती क्यू?? क्या इस पर चर्चा करना अनिवार्य नहीं है। हमारी समाज की स्त्रियाँ इस
पक्ष पर कभी बात करती नज़र नहीं आती हैं। स्त्री शोषण यह बहुत दुखद पहलू है। हमेशा
केवल पुरुष ही महिला के शोषण का जिम्मेदार नहीं होता, कई मामलो मे स्त्री
भी जिम्मेदार होती हैं। जैसे महिला डॉक्टर का उदाहरण ले सकते हैं। महिला डॉक्टर के
अलावा देश मे हो रही भूर्ण हत्याओं के जिम्मेदार कौन हो सकता हैं। चंद रुपयो के
लालच मे एक स्त्री यह तक भूल जाती है कि जिस गर्भ को तू गिराने जा रही है वो भूर्ण
एक होने वाली स्त्री ही है। और मजे के बात हैं कि अधिकतर मामलों एक महिला को
गर्भपात कराने के लिए मजबूर करने वाली सास के रूप मे एक स्त्री ही होती है। और भी
हमारे समाज मे ऐसे असंख्य उदाहरण आपको मिल सकते हैं, जो स्त्री के शोषण के जिम्मेदार एक स्त्री ही
होती है।
हमे यह बात कभी नहीं भुलनी चाहिए कि इस धरती पर स्त्री और पुरुष दोनों
एक दूसरे के पूरक है। दोनों समाज के सबसे महताव्पुर्ण अंग हैं। अपनी ज़िम्मेदारी
का एहसास दोनों को ही होना चाहिए। परिवार समाज की महताव्पुर्ण इकाई है और परिवार
स्त्री और पुरुष दोनों के मेल से बनता है। अगर समाज को स्वस्थ करना है, सबसे पहले हुमे
परिवार को स्वस्थ करना होगा। जहां तक स्त्री शोषण की बात की जा रही है, तो पुरुष वर्ग के
साथ स्त्री समुदाय भी स्पष्ट रूप से जिम्मेदार है। इस बात को नकार कर काम नहीं
चलने वाला है। केवल बड़ी-बड़ी बातें करके, कविताएं /कहानी/उपन्यास लिखकर,
बड़े-बड़े सेमिनार करके, समस्या का समाधान
नहीं निकाल सकता। स्त्री और पुरुष दोनों को ही मिलकर धरातल पर आकार कुछ करना होगा, जिसका शुभारंभ अपने
घर/परिवार से ही करना होगा..... तभी महिला दिवस मनाया जाना सफल और उचित होगा और
ऐसा होना भी कोई अतिशयोक्ति न होगी तब इस महिला दिवस की ज़रूरत न पड़े...
-डॉ. राम भरोसे
बहुत सार्थक प्रस्तुति आपकी अगली पोस्ट का भी हमें इंतजार रहेगा महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाये
ReplyDeleteआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
अर्ज सुनिये
कृपया आप मेरे ब्लाग कभी अनुसरण करे