(फेसबुक से ली गई डॉ कुँवर बेचैन की एक गजल के अंश )
जल रहा है देश सारा
और हम खामोश हैं
ज़र्रा-ज़रा है अंगारा और हम खामोश हैं
चाकुओं की नोक पर हैं अब हमारी गरदने
गरदनों पर है दुधारा और हम खामोश हैं
ज़र्रा-ज़रा है अंगारा और हम खामोश हैं
चाकुओं की नोक पर हैं अब हमारी गरदने
गरदनों पर है दुधारा और हम खामोश हैं
-कुंवर बेचैन
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