कैसे कहूँ
इस मौत को
कि ठीक है!
कैसे कहूँ
इस मौन को
कि ठीक है!
जब व्यवस्था ही
व्यवस्थित न रही
राजधानी में भी
बस्ती न रही
-एक बेटी तक
सुरक्षित न रही
आदमी के कुछ भी
बसकी न रही
तब मौत ने
इक सिरहाना दे दिया
तोड़ कर रौंदे गए
अगुआ हुए विश्वास को
एक भरोसा, एक बहाना दे दिया
दानवों की
दहशतों के दौर में
मगरमच्छी
आंसुओं के बौर में
कैसे कहूँ
इस मौत को
कि ठीक है!
कैसे कहूँ
इस मौन को
कि ठीक है...
-अजय मलिक (c)
इस मौत को
कि ठीक है!
कैसे कहूँ
इस मौन को
कि ठीक है!
जब व्यवस्था ही
व्यवस्थित न रही
राजधानी में भी
बस्ती न रही
-एक बेटी तक
सुरक्षित न रही
आदमी के कुछ भी
बसकी न रही
तब मौत ने
इक सिरहाना दे दिया
तोड़ कर रौंदे गए
अगुआ हुए विश्वास को
एक भरोसा, एक बहाना दे दिया
दानवों की
दहशतों के दौर में
मगरमच्छी
आंसुओं के बौर में
कैसे कहूँ
इस मौत को
कि ठीक है!
कैसे कहूँ
इस मौन को
कि ठीक है...
-अजय मलिक (c)
मौत ने इक सिरहाना दे दिया ...अपने आगोश में ले लिया ...
ReplyDeleteश्रद्धांजलि
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