Aug 13, 2009

"सर्वज्ञ जी के नाखून" -अशिष्ट


( अशिष्ट जी की फ़िर एक नई कहानी मिली है - सर्वज्ञ जी के नाखून )


सर्वज्ञ जी ने हमेशा की तरह आज भी सुबह सबसे
पहले होम्योपैथी की अपनी दवा का सेवन किया।
दवा के बाद उनकी ताज़गी लौट आई । बरसों बीत
गए मगर सर्वज्ञ जी के इस नित्य कर्म में कभी
कोई कोताही नहीं हुई । उनके इस नित्य कर्म को
सब जानते हैं मगर यह कोई नहीं जानता कि उन्हें
इस दवा को शुरू करने की आवश्यकता क्यों और
कैसे पड़ी ? उनकी बीमारी का भी आज तक किसी
को पता नहीं चल पाया।

जब वे बीस बरस के थे तो उनके सहपाठियों का मानना था कि उनके पेट में ऐसे कीडे हैं जो केवल होम्योपैथी की दवा से ही काबू किए जा सकते हैं। पढ़ाई-लिखाई पूरी करने के बाद जब एक दो साल उन्हें नौकरी के लिए भटकना पड़ा तो माना गया कि किसी तांत्रिक ने उन्हें नौकरी पाने के लिए कोई तंत्र-मंत्र बताया है जिसके लिए इस दवा का सेवन न सिर्फ जरूरी है बल्कि तंत्र के प्रभाव को कई गुना बढ़ाने में भी कारगर साबित होता है। यह बात तब पूरी तरह सिद्ध भी हो गई जब सर्वज्ञ जी डाकखाने में डाक छाँटने वाली नौकरी पा गए। लोगों को पूरा भरोसा था कि अब सर्वज्ञ जी का पीछा होम्योपैथी से छूट जाएगा मगर सर्वज्ञ जी ने डाकखाने का चपरासी बनने के बाद भी होम्योपैथी का पीछा नहीं छोड़ा । फिर लोगो ने सोचा कि शायद यह दवा शादी की शहनाइयाँ बजवाने के लिए ली जा रही है। लेकिन शादी के बाद भी सर्वज्ञ जी ने दवा नहीं छोड़ी और लोगों ने भी अनुमान लगाना जारी रखा।
सर्वज्ञ जी ने पचास के पार होने पर भी अपने आप को पूरी तरह संभाल कर रखा है । सुबह स्नानादि से निवृत होने के बाद अपने अंदाज़ में वे अपना सूट पहनते हैं । पैंट- कमीज़ के जोड़े को वे सूट कहते हैं। उन्हें किसी ने शादी से पहले बताया था कि ससुराल जाते समय पेंट-शर्ट के साथ बेल्ट बाँध लेने से सास-ससुर के साथ-साथ पत्नी भी परिवार बढ़ने की संभावनाओं को लेकर शक करने लगती है। बस फिर क्या था, उसी क्षण सर्वज्ञ जी ने जीवन भर बेल्ट न बांधने की कसम खा ली। उनकी पूरी बाजू की शर्ट के पीछे भी एक कहानी है - वे कभी भी कफ के बटन नहीं लगाते। इसका यह मतलब नहीं कि वे हमेशा आस्तीनें चढा कर रखते हैं। वे सिर्फ कफ को दो बार मोड़ लेते हैं। उन्हें शादी से पहले एक लड़की ने बताया था कि ऐसा करने से उनकी लम्बाई बढ़ी हुई लगती है और जूतों के साथ उनका व्यक्तित्व और अधिक निखर उठता है इसलिए वे कभी भी सेंडल नहीं पहनते।
डाकखाने के चपरासी के तौर पर उन्होंने नौकरी के लाज़वाब नुस्खे सीखे थे जो आज भी कारगर सिद्ध होते हैं । पहला नुस्खा - साधारण डाक का कोई रिकार्ड नहीं होता इसलिए जब भी डाक छंटाई के वक़्त थकान लगे , बची हुई डाक को गायब कर दो। आज भी एक बड़े महकमें में अफसर बनने के बाद वे यही करते हैं।
दूसरा नुस्खा - कभी भी गायब की गई डाक का पता किसी को मत होने दो, समय- समय पर अपने बॉस के खिलाफ डाक गायब करने की गुमनाम शिकायती चिट्ठियाँ सचिवालय को भेजते रहो। ऐसा करने से बॉस की जान सांसत में रहेगी और अपने लिए राहत नसीब होगी ।
तीसरा नुस्खा - सचिवालय के अधिकारियों के सामने सदैव हाथ बाँधे कमान की तरह खड़े रहो, मुंह से आवाज मत निकालो । लाख कहने पर भी उनके सामने मत बैठो। मिमियाती आवाज़ में बोलो ताकि साहब को अपनी साहबी पर गर्व महसूस हो।
चौथा नुस्खा - अपने सहकर्मी के सामने सारी दुनिया की बुराई करो मगर जिसके सामने कर रहे हो उसे उस समय छोड़ दो। बीच-बीच में अपने ताक़तवर होने का अहसास भी कराते रहो। अपने साथ हो सकने वाले हर संभव काल्पनिक अन्याय का बखान करो और चुप न बैठने की बहादुरी भी जताते रहो। फिर बड़े साहब के सामने मिमियाओ और सहकर्मियों के सम्बन्ध में उनके वाहयात होने के काल्पनिक प्रमाण प्रस्तुत करो। साहब लोग अक्सर कान के कच्चे होते हैं इसलिए उनके सामने औरों के बारे में इतना ज्यादा और इतनी अधिक बार झूठ बोलो कि सच के लिए कोई गुंजाईस ही बाकी न रहे। चीजों को लगातार उलझाते रहो ताकि लोगों का ध्यान गलती से भी आपकी गलतियों की तरफ न जाए। मिठाई सभी को पसंद है इसलिए जिसे जैसी मिठाई चाहिए खिलाते जाओ।
मिठाई की कद्र करने वालों ने सर्वज्ञ जी के व्यावहारिक ज्ञान से अभिभूत होकर उन्हें लगातार पदोन्नति दी। यहाँ तक कि कायदे-कानून को ताक पर रख कर भी मिठाई की मिठास का असर होता गया और एक दिन वे अन्य अनेक सुपात्र उम्मीदवारों को पछाड़ते हुए सहायक निरीक्षक के पद पर विराजमान हो गए।


उनके मातहत जितने भी लोग थे उनकी कद काठी सामान्य थी इसलिए वे अक्सर सीधे खड़े होकर सहज भाव से बात करते । सर्वज्ञ जी को सीधे खड़े होने वाले लोगों से जबरदस्त चिढ़ हो गई । जब भी कोई उनके सामने सीधा खड़ा होता उन्हें लगता कि वह चिढ़ा रहा है। इतनी अकड़ उन्हें बर्दास्त न होती और वे बिना बात ही उस सीधे खड़े आदमी पर बिफर पड़ते। जब भी कोई आदमी उनके पास से गुजरता उन्हें लगता कि जरूर कुछ उनसे छुपा रहा है। ऐसे में उनका गुस्सा उनके अपने हाथ के नाखूनों पर उतरता। धीरे धीरे उनकी अँगुलियों से नाखून नदारत होने लगे।


सचिवालय के अधिकारियों के सम्मुख अब वे कमान से भी अधिक लचक के साथ खड़े होते। बरबस ही उनका हाथ उनके मुंह के सामने चला जाता, जिसके नाखून कब के खाए जा चुके होते। होम्योपैथी की दवा और बेल्ट न बाँध पाने की प्रतिज्ञा के बावजूद वे पिता नहीं बन पाए। इसका दोष भी उन्होंने कभी अपने ऊपर नहीं आने दिया और इसे सीधे खड़े होने वाले लोगों की साजिश करार दिया। जितने सर्वज्ञ जी के नाखून घटते सचिवालय में गुमनाम शिकायतों की संख्या उतनी ही बढ़ जाती। उनके परिचय के दायरे में ऐसा कोई नहीं था जिसके खिलाफ उन्होंने गुमनाम लिफाफे न भेजे हों। मिठाई खिलाते-खिलाते कब वे स्वयं मधुमेह के शिकार बने उन्हें पता तक नहीं चल पाया। सारे जमाने का अपराधबोध उनके अपने रोजमर्रा के क्रियाकलापों पर छा गया जिसका इलाज होम्योपैथी के पास भी शायद नहीं था। बहरहाल दवा अब भी जारी है ।


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