Jul 30, 2022

न जाने ये कैसी मँझधार

न जाने ये कैसी मँझधार, 

न डूबे, ना पहुँचे उस पार,

इक इक बूँद तरस गयी धार

क्यूँ राही ठहर गए थक हार !


जिधर देखो बस खरपतवार 

महकते फूल बने हैं खार

नाड़ पर रख देते तलवार

कि दुश्मनी खूब निभाते यार !


किसी से नहीं कोई तकरार

रात दिन फिर भी होते वार

बदलते रोज-रोज रंगरेज़

किसी को किसकी है दरकार!


राह चलने तक चलती प्रीत

बेसुरे लगते हैं सब गीत

कहाँ से आयी ऐसी रीत

कोई तो पल भर करे विचार!


-अजय मलिक (c)

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