Jul 30, 2022

अब ना जाने....

अब ना जाने

क्योंकर यादें 

चुपके चुपके 

खो जाती हैं ।


सूने पथ को

हरदम तकतीं

खोई अँखियाँ 

रो जाती हैं ।


लोग लफ़ंगे 

ज़ालिम जग है

भूलें अक्सर 

हो जाती हैं ।


सुनते सुनते 

झूठे वादे 

बस तकलीफ़ें

हो जाती हैं।


सबको अपना

मान मान कर

बाकी बतियाँ 

सो जाती हैं ।


है उन्हें पता 

सब कच्चा चिट्ठा 

बस अरज़ी ही

खो जाती हैं ।


कौन सुनेगा

खरी खरी, जब

बातें नकली 

हो जाती हैं ।

-अजय मलिक  (c)

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