Jul 30, 2022

ज़िद में जान ....

कहा सुना सब रह जाता है 

ज़िद में जान चली जाती है ।


कोई नशे में सो जाता है,

कोई ख़्वाब में खो जाता है,

नींद किसी की उड़ जाती है ।

ज़िद में जान चली जाती है ।


रूठ मनाकर, कहीं सुनाकर

भूल भटक कर घर आता है,

प्यास आस की रह जाती है।

ज़िद में जान चली जाती है ।


सूरज उगता फिर ढल जाता,

सबको उजला दिन भाता है,

फिर भी रात चली आती है ।

ज़िद में जान चली जाती है ।


प्यार यार बस तड़पाते हैं,

अपनी राह सभी जाते हैं,

दिल की चाह नहीं जाती है ।

ज़िद में जान चली जाती है ।


कहा सुना सब रह जाता है !


-अजय मलिक “निंदित” (c), 

केरलापुरम , १९ जून, २०२२

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