मिथिलेश कुमार सिंह के मामले में दिनांक: 01-05-2013 को
पारित माननीय उच्चतम न्यायालय का आदेश राजभाषा के मामले में पारित अब तक का
सर्वाधिक महत्वपूर्ण आदेश है। यह आदेश राजभाषा(ओं का) अधिनियम 1963 और राजभाषा
नियम 1976 की वैधानिक स्थिति को स्पष्ट करता है। यह आदेश राजभाषा नीति के
जानकारों और गैर जानकारों दोनों के लिए एक नया अध्याय है। इस अध्याय से यह एहसास
भी होना चाहिए कि प्रेरणा, प्रोत्साहन और सद्भावना से राजभाषा नीति का
कार्यान्वयन सुनिश्चित कराना एक सरकारी प्रक्रिया हो सकती है मगर इसके नाम पर संसद
द्वारा पारित राजभाषा अधिनियम, नियमों तथा महामहिम राष्ट्रपति के आदेशों के मामले में अनदेखी
करने की छूट नहीं दी जा सकती। जो ऐसा मानते हैं, वे केवल तब तक निश्चिंत रह सकते
हैं जब तक ऐसे मामले न्यायालय के समक्ष विचारार्थ नहीं जाते। लेकिन इस आदेश के माध्यम
से माननीय न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि न्यायालय की दृष्टि में राजभाषा
अधिनियम एवं नियमों का अनुपालन करना और कराना भी वैधानिक अनिवार्यता है।
एक बार फिर से उक्त आदेश का लिंक नीचे दिया जा रहा है, राजभाषा नीति के कार्यान्वयन से जुड़े लोग इसे जरूर पढ़ें -
http://courtnic.nic.in/supremecourt/temp/sc%201072312p.txt
पुनश्च:
माननीय उच्चतम न्यायालय का एक आदेश बैंक एवं वित्तीय संस्थाओं में इलेक्ट्रानिक उपकरणों में द्विभाषिकता के मामले में भी आ चुका है जिसके अनुसार जहां भी संभव (Feasible) हो इलेक्ट्रानिक उपकरणों, कंप्यूटर आदि में द्विभाषिकता होनी चाहिए। एक आदेश केरल की राजभाषा मलयालम के मामले में भी 17 अगस्त 1998 को केरल उच्च न्यायालय द्वारा पारित किया जा चुका है।
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