गाँव तक आए शहर
छाँव तक ले उड़े …
नेता के झूठ, सिर
पाँव तक ले उड़े …
भूख से मरा कोई
चाम तक ले उड़े…
सुबह कभी हुई नहीं
शाम तक ले उड़े…
घाव नित नये दिये
बाम तक ले उड़े…
प्रेम की दुकान से
जाम तक ले उड़े…
न्याय से अन्याय कर
दाम तक ले उड़े…
पाँच सेर नाज पर
काम तक ले उड़े…
अब न कोई ठौर है
छान तक ले उड़े…
देश के करणधार
कान तक ले उड़े…
आन-बान-शान संग
जान तक ले उड़े…
-अजय मलिक
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