यहाँ हर सुबह
रात आई है
कालिख भरे
उजाले ने
अँधेरे की
इज्जत बचाई है
न हाथों में
राखी बंधवाई है
न माथे पर
बिंदी लगवाई है
फिर भी
बस नाम के
उजाले ने
अपने भाई की
खातिर
आठों पहर
अंधेरे की
सलामती की
कसम खाई है
खुद पर
खुद ही कितनी
कालिख लगाई है
- अजय मलिक (c)
No comments:
Post a Comment