Feb 9, 2011

मान जब हार लेता हूं तभी उम्मीद दिखती है

एक ग़ज़ल या गीत मुझे ई मेल से अग्रेषित होकर आया है. रचयिता का नाम नहीं दिया गया है. मुझे भी रचनाकार का पता नहीं है लेकिन इसे पढ़ना अच्छा लगा आप भी अपनी अवश्य राय दें -

कभी मिलती हैं मांगे से, कभी बिन चाह मिलती हैं,
अजब है ज़िन्दगी, हर मोड़ पर दो राह मिलती हैं..

चलूं गर राह पर दिल की, तो मिलती ठोकरें हर दम,
बढ़ाऊं होश से कदमों को तो भी है मिले बस ग़म,

जलाकर रूह को, दिल से निकलती आह चलती हैं,
अजब है ज़िन्दगी, हर मोड़ पर दो राह मिलती हैं..

मोहब्बत उनसे करते हैं, बड़ी मुश्किल से बतलाया,
सुना इनकार जो, दिल को बड़ी मुश्किल से समझाया,

मगर उन ही से टकराती मेरी हर राह चलती है,
अजब है ज़िन्दगी, हर मोड़ पर दो राह मिलती हैं..

ज़रूरत से कभी दे ज़्यादा, वो विश्वास देता है,
कभी बस भूख देता है, उबलती प्यास देता है,

बढ़ाऊं या मैं रोकूं जो दुआ में बांह चलती हैं..
अजब है ज़िन्दगी, हर मोड़ पर दो राह मिलती हैं..

मान जब हार लेता हूं तभी उम्मीद दिखती है,
कई रमज़ान गुज़रें साथ तब इक ईद दिखती है,

मनाऊँ मौत को तो जीने की फिर चाह पलती है,
अजब है ज़िन्दगी, हर मोड़ पर दो राह मिलती हैं..

कभी मिलती हैं मांगे से, कभी बिन चाह मिलती हैं,
अजब है ज़िन्दगी, हर मोड़ पर दो राह मिलती हैं..

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