Sep 24, 2009

मुफ़्त मुफ़्त मुफ़्त: मगर कितना चाहिए!!

मुफ़्त से किसी को कोई परहेज़ नहीं। होना भी क्यों चाहिए? पुरानी कहावत है -"मुफ़्त के चंदन , घिस मेरे नंदन " चंदन को मंजन कर लीजिए फ़िर दांत बचें या न बचें जब मुफ़्त में मिल रहा है तो एक बार आजमाने में क्या जाता है ? हमने पूरी कोशिश की है कि हिन्दी सीखने के लिए जो भी लिंक हम सुझाएँ वे न सिर्फ़ मुफ़्त हों बल्कि उपयोगी भी हों। अब यह सीखने वालों पर है कि वे इनका कितना उपयोग कर पाए या कर पाएंगे।
यहाँ एक बेहद महत्वपूर्ण बात बतानी जरूरी है जो हमें मार्गदर्शन एवं परामर्श पाठ्यक्रम के दौरान बताई गई थी। वह बात थी -" बिन मांगे मार्गदर्शन या परामर्श कभी न दिया जाए।" इसका कारण भी बताया गया था-जब तक किसी को स्वयं यह महसूस न हो कि उसे परामर्श की आवश्यकता है तब तक उसे बताई गई हर बात निरर्थक है , ऐसी किसी बात का कोई प्रभाव नहीं पड़ता जब तक किसी को सूचना की आवश्यकता नहीं है तब तक दी गई सूचना एक बोझ की तरह है।
इसी के साथ जब बिना संघर्ष किए कुछ मिलता रहता है तब तक उसका कोई महत्त्व नहीं होता। संघर्ष से ही यह एहसास होता है कि जो मिला है वह कितना कीमती -बहुमूल्य है। हमने अनेक वेब साइटें हिंदी सिखाने का दावा करने वाली देखीं जिनमें पहले पंजीकरण आवश्यक था और उसके बाद एक निश्चित फीस की मांग की जाती थी और उसके बाद भी जो मिलता था वह यदि अनुपयोगी नहीं था तो बहुत अधिक आकर्षक भी नहीं था। इतने पर भी उन वेबसाइटों की चांदी कट रही थी/है क्योंकि पैसे देने की बाध्यता और उसके बाद पैसे वसूलने की मानसिकता दोनों का अजीब सा अरुचिकर आकर्षण होता है ।
बहरहाल अब हमारी कोशिश ये होगी कि नए लिंक्स न दिए जाएँ और पुराने लिंक आधारित प्रश्न दिए जाएँ जिनके उत्तर हिंदी सीखने वाले कमेंट्स या ई-मेल के द्वारा दें। इसी प्रकार हिंदी सीखने में आ रही कठिनाइयों पर खुली चर्चा हो ताकि थोड़ा कुछ हमें भी सीखने को मिल सके ।

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