Feb 15, 2023

१२वें विश्व हिंदी सम्मेलन की सफलता के लिए कोटिशः शुभकामनाएँ।

 पौ बारह…

१२वें विश्व हिंदी सम्मेलन की सफलता के लिए कोटिशः शुभकामनाएँ।
विहिंस में आमंत्रित, आधिकारिक रूप से शामिल होने के लिए स्वीकृति प्राप्त तथा हिंदी की प्रगति के लिए व्यथित किंतु अनाधिकारिक रूप से शामिल होने योग्य न पाए गए, फ़ीजी पहुँचे सभी सरकारी- ग़ैर सरकारी प्रतिनिधियों, घोषित-स्वघोषित-अघोषित-पुरस्कृत हिंदी विशेषज्ञों एवं अन्य हिंदी की चाशनी से सराबोर हिंदी प्रेमियों से अति विनम्र प्रार्थना है कि फ़ीजी में जहाँ कहीं भी उन्हें अपना नाम किसी काग़ज़, पत्र-प्रपत्र आदि पर कलम से लिखने का सौभाग्य प्राप्त हो, वहाँ रोमन लिपि के बजाय देवनागरी का प्रयोग करने से न चूकें।
बताते हैं कि हिंदी फ़ीजी की सह राजभाषा है, अत: अभ्यासवत् गलती से यदि कोई कलम नाम के मामले में रोमन में फिसल जाए तो हाथ सँभालकर साथ-साथ देवनागरी में भी ज़रूर लिखें।
विहिंस के समापन के बाद इस बात का सर्वेक्षण भी कराया जाए कि होटल, अतिथि गृह, यात्री निवास आदि में, पंजीकरण प्रपत्र / आगंतुक रजिस्टर आदि में कितने प्रतिशत ने अपना नाम देवनागरी लिपि में हिंदी में लिखा और कितने रोमन लिपि तक ही रुक गए!
जो भी विहिंस में दिल्ली या हिंदी भाषी राज्यों से गए हैं, उनसे बीती बिसारते हुए आगामी एक वर्ष तक दरियादिली के साथ हिंदी में अपना काम करने या कम से कम नाम देवनागरी हिंदी में लिखने का शपथ पत्र भी ले लिया जाए, तो बल्ले बल्ले…
शपथ पत्र न सही, सिर्फ़ वादा ही करा लिया जाए!
कहीं से भटकता हुआ विदेश मंत्रालय, नई दिल्ली का एक पत्र जैसा कुछ मेल-शेल से किसी से मिला, जिसके साथ फ़ीजी विहिंस के संबंध में ‘यस और नो’ की लिस्ट (सूची) थी…पत्र शीर्ष पर ‘भारत सरकार’ नहीं था…वह पत्र, परिपत्र या कार्यालय ज्ञापन आदि जो भी था या है, हिंदी से बेदाग़ विशुद्ध अंग्रेज़ी में था, भेजने वाले के हस्ताक्षर रोमन जैसी लिपि में लग रहे थे/हैं…१२वें विहिंस संबंधी १२ फ़रवरी की तिथि अंकित यह दस्तावेज भारत सरकार के सभी सचिवों और वित्त सलाहकारों को भेजा गया…शायद हिंदी वर्जन विल फ़ॉलो भी फिसल गया…
…यद्यपि व्यक्तिगत रूप से मेरा तो यह मानना है कि राजभाषा नीति और हमारा संविधान केंद्रीय सरकार के कार्यालयों आदि से हिंदी में मूल दस्तावेज तैयार करने और अंग्रेज़ी अनुवाद तत्काल संभव न होने पर “अंग्रेज़ी पाठ या वर्जन बाद में भेजा जाएगा” अंकित करने की ही अनुमति देता है!
इस विहिंस में निम्नलिखित तीन प्रश्नों का उत्तर तलाशने का भी प्रयास अवश्य किया जाए कि -
१. जब राजभाषा अधिनियम-१९६३ (यथा संशोधित १९६७) संपूर्ण भारत ( जम्मू काश्मीर संबंधी धारा ६, ७ को छोड़कर) पर लागू है, सरकार को धारा ८ के तहत अधिनियम के प्रावधानों के मात्र क्रियान्वयन के लिए नियम बनाने के लिए ही शक्तियाँ प्राप्त हैं, तो तमिलनाडु में राष्ट्रपति शासन के रहते हुए १७ जुलाई, १९७६ को पारित राजभाषा नियमों का “विस्तार” तमिलनाडु राज्य पर क्यों नहीं है?
२. राजभाषा नियमों का विस्तार तमिलनाडु राज्य पर न होने की स्थिति में नियम-२ (ख) में परिभाषित केंद्रीय सरकार के कार्यालय, केन्द्रीय सरकार के कर्मचारी, हिंदी का कार्य साधक ज्ञान/ प्रवीणता आदि की तमिलनाडु में स्थित केंद्रीय सरकार के कार्यालय/ कर्मचारी आदि की राजभाषा नीति के संदर्भ में परिभाषाएँ क्या हैं?
३. राजभाषा अधिनियम १९६३ की धारा -९ (section-9) में संशोधन क्यों विलंबित है?
एक बार फिर से विहिंस की सफलता के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ।
जयहिंद,
जय भारत,
जय हिंदी,
जय समस्त भारतीय भाषाएँ।
-अजय मलिक “निंदित”

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