माननीय संसदीय राजभाषा समिति के विभिन्न केंद्रीय कार्यालयों के राजभाषा संबंधी निरीक्षणों की बहुत सारी फ़ोटो फ़ेसबुक पर चस्पाँ की जाती है। समिति के सभी माननीय संसद सदस्यों द्वारा अत्यंत गंभीरता से किए जाने वाले इन राजभाषा के कार्यान्वयन संबंधी निरीक्षणों के बाद समिति द्वारा निरीक्षित कार्यालयों को उनके यहाँ राजभाषा में हो रहे कामकाज की वस्तुस्थिति से भी अवश्य ही अवगत कराया जाता होगा!
एक ही कार्यालय के दूसरी, तीसरी बार निरीक्षण होने पर हर बार उत्तरोत्तर हो रही प्रगति का ब्यौरा भी दिया जाता होगा। राजभाषा का कार्य बड़ा ही दरियादिली वाला जनहित का कार्य है, जिसमें प्रेरणा, प्रोत्साहन और सद्भावना सबसे पहले आते हैं और हिंदी सहित बाक़ी सारी बातें बाद में आती हैं । मेरा सभी निरीक्षित कार्यालयों के प्रशासनिक प्रधानों और उनके मंत्रालयों में तैनात केंद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा के अत्यंत कर्मठ, समर्पित और सक्रिय अधिकारियों से विनम्र और सादर निवेदन है कि वे ये जानकारी भारत की जनता तक पहुँचाएँ कि उनके कार्यालयों में माननीय संसदीय राजभाषा समिति के प्रथम निरीक्षण के बाद ही समिति के संसदीय दिशानिर्देशों के तहत निर्धारित लक्ष्यानुरूप कामकाज हिंदी में होने लगा है और जनता को भी अंग्रेज़ी के प्रति मोह त्याग कर हिंदी के प्रति समर्पित हो जाना चाहिए, क्योंकि उनके विशेषकर “क” क्षेत्र में स्थित कार्यालयों में जहाँ पत्राचार का लक्ष्य १००% है अंग्रेज़ी के लिए कोई जगह नहीं बची है।
यदि समिति के दूसरे निरीक्षण के बाद भी किसी केंद्रीय कार्यालय में हिंदी के लिए निर्धारित लक्ष्य से कम हिंदी और बचीखुची जगह से अधिक अंग्रेज़ी की घुसपैठ पाई जाए तो ऐसे कार्यालयों के प्रशासनिक प्रधान, उनके मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारियों और केंद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा के अधिकारियों के खिलाफ संसद की अवमानना का मामला दर्ज कर अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की जाए और कार्यवाही पूरी होने तक ज़िम्मेदार अधिकारियों की पदोन्नति आदि पर रोक लगाई जाए। हिंदी में कामकाज का मामला प्रेरणा, प्रोत्साहन एवं सद्भावना पर आधारित है, किंतु माननीय संसद, संसदीय समिति के दिशानिर्देशों की अवहेलना के लिए कोई प्रेरणा या प्रोत्साहन का प्रावधान नहीं है।
माननीय संसदीय राजभाषा समिति द्वारा पहले, दूसरे, तीसरे … निरीक्षणों के बाद भी संबंधित कार्यालयों में अंग्रेज़ी का बेख़ौफ़ क़ब्ज़ा जमाए रहना और अंग्रेज़ी को क़ब्ज़ा जमाए रखने में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सहयोग व सहायता देने वाले अधिकारियों के खिलाफ किसी अवमाननात्मक कार्रवाई का न होना विवेचना का विषय है, जिसपर “हम भारत के लोगों को, जिन्होंने स्वयं के लिए २६ नवंबर, १९४९ को विधान (संविधान) दिया है, चिंतित होना चाहिए।”
माननीय संसदीय राजभाषा समिति को भी दूसरे, तीसरे… निरीक्षण से पूर्व पहले निरीक्षण के दिशानिर्देशों पर हुई कार्रवाई और दूसरे निरीक्षण के बाद संभावित शुरू की गई अवमानना की कार्यवाही के लिए निरीक्षण प्रश्नावली में प्रावधान करने पर विचार करना चाहिए।
मेरा व्यक्तिगत तौर पर यह मानना है कि माननीय संसद और संविधान सर्वोपरि हैं और मुझे पूर्ण विश्वास है कि भारत का कोई भी नागरिक मेरी इस सोच से असहमत नहीं हो सकता। यदि कोई कार्यालय, अधिकारी या नागरिक संसद या संसदीय समिति को किसी भी मामले में गुमराह करता है, तो यह अक्षम्य है।
माननीय संसदीय राजभाषा समिति द्वारा किसी भी कार्यालय का तीसरी बार निरीक्षण तब ही किया जाना चाहिए, जब पहले निरीक्षण के बाद जारी दिशानिर्देशों पर कार्रवाई हो चुकी हो और दूसरे निरीक्षण के बाद अवमानना की कार्यवाही पूरी हो चुकी हो।
यक़ीन मानिए, माननीय समिति को किसी भी कार्यालय के तीसरी बार निरीक्षण की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी! मामला सिर्फ़ हिंदी में कामकाज या राजभाषा नीति के कार्यान्वयन का नहीं, बल्कि माननीय संसद और संसदीय समिति की गरिमा व विशेषाधिकार का है, जिसमें प्रेरणा, प्रोत्साहन नहीं बल्कि मात्र अक्षरशः अनुपालन का प्रावधान है ।
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