यह भी बीत चला ठीक वैसे ही जैसे बहुत से लोग जिनमें शायद मैं भी हूँ चुक गए। धीरे-धीरे और कभी तेजी से भी, बस यूँ ही गुजर जाती है जिंदगी। बहुत सोचते हैं हम जिंदा रहने के लिए, कितना तो बचते हैं सोचने से मृत्यु के बारे में। यदि कोई सोचना चाहता है तो उसकी सोच को नकारात्मक कह दिया जाता है। एक परम सत्य के बारे सोचना नकारात्मक क्यों है पता नहीं। शायद मस्तिष्क याकि सम्पूर्ण चिंतन में ही छुपा हुआ बेहद गहरा डर है जो अचेतन में होते हुए भी सबसे चैतन्य है।
ऊपरवाली
पंक्तियाँ 2013 की विदाई के वक्त
लिखी थीं। समय कम था या कुछ वितृष्णा जैसा
भाव था ...पता नहीं मगर सब अधूरा सा लगा और फिर छोड़ दिया याकि छूट गया।
आज विश्व हिंदी
दिवस है...ऐसा लोगों का मानना है।
फेसबुक पर एक बंधु रोज सिर्फ जगाने का काम कर रहे
हैं, वे सपने में यह सब कर रहे हैं या सोते हुए... वे कहते हैं जागो... मखमली बिस्तर
पर पड़े लोग पहले ही इतने तनाव ग्रस्त हैं कि नींद उनसे और वे नींद से करोड़ों कोसों
दूर है, ऊपर से ये महाशय उन्हें जगाए रखने के लिए कृत संकल्प
हैं ताकि मखमली बिस्तर मिल सके। जब ये मखमली बिस्तर पर थे तो बड़ी लंबी और गहरी नींद
सोते थे और सिर्फ सोते थे... अब हैं कि किसी को भी नहीं सोने देना चाहते।
-अजय
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