मैं जाति की जाति
हूँ
जाती नहीं हूँ जाति
हूँ
मैं सत्य सती हूँ
आदमी की अति हूँ
जो जाति के बाहर हैं
मैं उनकी भी जाति
हूँ सोते में भी जाति हूँ
रोते में भी जाति हूँ
इतनी बढ़ी जाति हूँ
कि पूरी प्रजाति हूँआती हूँ तो जाति हूँ
जाती हूँ तो जाति हूँ
खान पान सांस शरण
आन बान जन्म मरण
हार-जीत मार-पीट
झूठ-गबन प्रेम-प्रीत
पाठ से पहाड़ तकचीख से दहाड़ तक
हर कदम साथ साथ
कहाँ नहीं जाती हूँ !
कहीं पर किराए में
कहीं कुर्सी पाए मेंकहीं पर तिराहे में
ब्याह-शादी-साये में
कफन से दफन तक
मेरी ही पुकार है
जीवन का लक्ष्य-मोक्ष
जाति की दरकार है
घर हो या घेर हो
बकरी या शेर हो खेत या खलिहान हो
दफ्तर या दुकान हो
महल या श्मशान हो
मेरी ही सरकार है
अमीरी बेकार है
गरीबी बेकार है
मेरे बिना जग में
हर आदमी बेकार है
-अजय मलिक
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