May 18, 2012

बेचारा बनवारी

[एक कहानी... ]
             बेचारा बनवारी
  -अजय मलिक


बनवारी की मुसीबतें खत्म होने का नाम नहीं ले रही थीं। वे बिजली का बिल जमा करने गए थे। उस दिन बिल जमा करने की आखरी तारीख थी। लंबी कतार में कई घंटे खड़े रहने के बाद जब उनकी बारी आई तो उन्हें जंग जीत लेने जैसा एहसास होने लगा। मगर जल्द ही उन्हें इस विचार को त्याग देना पड़ा और फिर वे आईपीएल की किसी टीम के आखरी ओवर की अंतिम गेंद पर होने वाले चमत्कार या बिजली गिरने जैसी संभावनाओं पर विचार करने लगे।

बिल बाबू ने उन्हें घूर कर देखा और उनका पाँच सौ का कड़क नोट लौटा दिया। बनवारी ने सवाली नज़रों से देखा तो बिल बाबू ने खरखराती आवाज़ में दुलत्ती जमा दी– “आपका ये नोट सही नहीं है”।

बनवारी : “अच्छा-भला तो है, इसमें खराबी क्या है? नया नोट है, आज ही एटीएम से निकाला है”।

बिल बाबू : “नया नोट क्या खराब नहीं हो सकता?... एटीएम क्या हमसे ज्यादा जानता है?”

बनवारी : “मगर इसमें खराबी क्या है?”

बिल बाबू : “अब आपको खराबी समझ में नहीं आ रही है तो इसका हम क्या करें ? हमने बता दिया कि यह नोट सही नहीं है तो बस सही नहीं है”।

बनवारी ने दूसरा पुराना नोट निकालकर आगे बढ़ाया तो बिल बाबू चिढ़ गया।

बिल बाबू : “यह नोट भी सही नहीं है”?

बनवारी : “पर ये तो पुराना है?”

बिल बाबू : “हमने कब कहा कि ये नया है? क्या पुराना नोट गलत नहीं हो सकता?”

बनवारी : “अरे बाबू जी, ये देखिए इसपर गवर्नर के हस्ताक्षर हैं, बीच का धागा भी सही है, कहीं से कटा-फटा भी नहीं है?”

बिल बाबू : “आप कैसे कह सकते हैं कि ये हस्ताक्षर गवर्नर के ही हैं? आपके और हमारे नोटों के गवर्नर अलग-अलग कैसे हो सकते हैं! आप गवर्नर को जानते हैं क्या? धागा तो कोई भी डाल सकता है? फिर हमने अभी धागे की तो बात ही नहीं की है। कटा-फटा न हुआ तो क्या? जब हम कह चुके हैं कि ये नोट भी सही नहीं है तो नहीं है”।

बनवारी : “अरे बिल बाबू, हम इस पर अपना अता-पता सब लिख देते हैं, फोन नंबर भी लिख देते हैं, हस्ताक्षर भी कर देते हैं। अगर कभी गलत साबित हो तो हमें सज़ा दिलवा दीजिएगा”।

बिल बाबू : “आपके हस्ताक्षर से क्या हमारा कहा गलत हो जाता है ! आप स्वयं गवर्नर हैं क्या? जब हमें दिखाई दे रहा है कि नोट सही नहीं है तो बताइए हम आप से लिखवाते क्यों फिरें? जब हम खुद सज़ा दे सकते हैं तो किसी और से दिलवाने की क्या जरूरत है !”

बनवारी : “अच्छा, बिल बाबू आप चेक ले लीजिए”- बनवारी ने चेक साइन कर आगे बढ़ाया।

बिल बाबू : “हमें चेक का रोब दिखा रहे हैं! जब आपका नोट गलत हो सकता है तो आपका चेक भी गलत हो सकता है?”

बनवारी : “बिल बाबू, आप इसे हमारे बैंक में भेज दीजिए अगर वहाँ से गलत बता कर वापस कर दिया जाए तो हम कोई भी सजा भुगतने को तैयार हैं। आप जिससे चाहे पूछ लीजिए, ये चेक सही है”।

बिल बाबू : “हमें किसी से पूछने की क्या जरूरत है, हमें बेवकूफ समझा है क्या? हमने बता दिया कि गलत है तो गलत है। हम क्या आपके बैंक वालों के गुलाम हैं, आपके बैंक वालों ने आपके कहने पर अगर इसे सही भी बता दिया तो भी हम कैसे मान लें कि यह सही है। हमने कह दिया ‘गलत है’ तो गलत है, इसमें आपके बैंक वाले क्या करेंगे!”

बनवारी: “अरे बिल बाबू, आज बिल जमा करने का आखरी दिन है। बिजली कट जाएगी। आप मदद कीजिए।“

बिल बाबू : “इतनी बहस के बाद भी हमसे मदद की उम्मीद है आपको! जब हमने पहले बताया कि नोट सही नहीं है तब तो मदद नहीं मांगी आपने! हमें गवर्नर के हस्ताक्षर दिखाने चले थे। अब तो गवर्नर से पक्का करने के बाद ही कुछ हो सकता है। आप नोट और चेक छोड़ जाइए। हम नोट गवर्नर को भेजेंगे और चेक बैंक के हैड ऑफिस को...”

बनवारी : “मगर ये गवर्नर तो रिटायर भी हो गए होंगे!”

बिल बाबू : “तो क्या हुआ, वे कहीं तो रह रहे होंगे, उनके शहर-गाँव या जो भी जगह हो वहाँ भेज कर पक्का कराएंगे”।

बनवारी : “मगर इस खतोकिताबत में तो समय लगेगा, हमारी लाइन कट जाएगी.... और अगर साइन करने वाले गवर्नर इस बीच स्वर्ग सिधार गए होंगे तो...”

बिल बाबू : “हमें उनके मरने-जीने से कुछ लेना-देना नहीं है। चाहे जो हो जाए, उन्हें ये तो साबित करना ही पड़ेगा कि इस नोट पर उन्हीं के साइन हैं”।

बनवारी : “मगर आप ऐसा कैसे कर सकते हैं बिल बाबू, आप सरकारी बाबू हैं, आपको सरकार के नोट को लेने में आपत्ति कैसे हो सकती है?”

बिल बाबू : “हम कर रहे हैं तो इसमें ‘कैसे कर सकते हैं’ के सवाल का क्या मतलब है! अब हम गवर्नर के साइन पर ही नहीं रुकेंगे, हम इस बात का भी पता लगवाएंगे कि आप ही के पास ये नोट कैसे आया, किसी और ने ये नोट हमें क्यों नहीं दिया।”

बनवारी : “बिल बाबू, दया कीजिए। कुछ तो उपाय बताइए”।

बिल बाबू : “अब हमको ही उपाय बताने को कह रहे हैं तो सुनिए, इन दोनों नोटों को जांच के लिए छोड़ जाइए। ऐसा कैसे हो सकता है कि हमारे नोट के गवर्नर अलग हैं और आपके नोटों के अलग... नोट तो सही नहीं हैं। रही बात आपके चेक की तो इसका पता लगवा लेंगे। यदि सही हुआ तो बैंक वाले पास कर देंगे और आपकी बिजली नहीं कटेगी”।

बनवारी : “और अगर गलत हुआ...?”

बिल बाबू : “तो दो-तीन नोट और ले आना, उनकी भी जांच करवा लेंगे”।

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1 comment:

  1. बहुतही अच्छे ढंगसे बताया गया है कि एक समाजके तौरपर हमारा एक दूसरेके प्रति बर्ताव कैसा है। हमें एक ऐसी राष्ट्रीय नीतीकी आवश्यकता है, जिसके होते हुए हम एक दूसरके साथ बंधुभावसे पेश आएंगे।

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