Apr 7, 2011

दो अच्छी गज़लें

 (१)  
अजनबी देश है यह, जी यहाँ घबराता है
कोई आता है यहाँ पर न कोई जाता है

जागिए तो यहाँ मिलती नहीं आहट कोई,
नींद में जैसे कोई लौट-लौट जाता है

होश अपने का भी रहता नहीं मुझे जिस वक्त
द्वार मेरा कोई उस वक्त खटखटाता है

शोर उठता है कहीं दूर क़ाफिलों का-सा
कोई सहमी हुई आवाज़ में बुलाता है

देखिए तो वही बहकी हुई हवाएँ हैं,
फिर वही रात है, फिर-फिर वही सन्नाटा है

हम कहीं और चले जाते हैं अपनी धुन में
रास्ता है कि कहीं और चला जाता है

दिल को नासेह की ज़रूरत है न चारागर की
आप ही रोता है औ आप ही समझाता है ।
                                             -सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
(२)
अगर आप होते भुलाने के क़ाबिल,
तो होते कहां दिल लगाने के क़ाबिल !

वो वादा तुम्हारा , भरोसा हमारा ,
लगे कब हमें टूट जाने के क़ाबिल !

बसी है जो आंखों में तस्वीर तेरी ,
नहीं आंसुयों से मिटाने के क़ाबिल !

अँधेरे जुदाई के कुछ कम तो होते ,
जो होते तेरे ख़त जलाने के क़ाबिल !

मुहब्बत की शायद हक़ीक़त यही है ,
कि शै है ये सपने सजाने के क़ाबिल !

सनम मुझ को मंज़ूर मरना ख़ुशी से ,
बने मौत लेकिन फ़साने के क़ाबिल !

                                            -मधुभूषण शर्मा 'मधुर'


(कविता कोश के सौजन्य से) 

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