जो बीत गया उससे सीखें
वह फिर दोहराया न जाए
फिर किसी बहन माँ बेटी का
यूँ खून बहाया न जाए
हो नए साल में नई चाल
जिसमें चालाकी न आए
बहते गंगाजल से निर्मल
मन में मैलापन न आए
जब बात नहीं कोई बात नहीं
गर बिगड़ी बनती बन जाए
निजहित भी तो कुछ परहित हो
परहित में निजहित न आए
अजय मलिक (c)
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