(अशिष्ट जी फिर मुखातिब हैं एक तथाकथित नई कविता के साथ )
हम धान की पौध से गेहूँ उगाएंगे
गन्ने के रस से नई रूई बनाएंगे
गुड़ से बनेंगे कपड़े जलेबीदार
जई से बनेगी रबड़ी जायकेदार
चोर होंगे हमारे नए चौकीदार
सब काम हम नए ढंग से कराएंगे
अपने मुताबिक़ नई दुनिया बनाएंगे
भगवान से कहेंगे- रुको भागो नहीं
स्वर्ग में भी जल्द हम झाडू लगाएंगे
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