-अजय मलिक की एक नई कविता
वह पहाड़ भी टूटागिरा और बह गया। प्रवाह में पलानया रूपनए रंग-ढंगऔर अंतत:रेत हो गई काया। रोके न रुकाबहाव, फिर भी।
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