(अजय मलिक की एक नई कविता )
मैं हिंद का निवासी
हिंदी मेरी जुबान
मेरी हसरतें हैं
ये मेरा हिंदोस्तां ।
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हिंदी में गुफ़्तगू है
मथुरा व मदुरै में ।
इंगे वा कुचि-कुचि दिल्ली,
उंगे जा भई चिन्नई म ।
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तुम खल लाख खेलो ।
शत लाख दंड पेलो ।
वाणक्कम भई नमस्ते,
हिंदी म अब तमिल है ।
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एकात्म देश मेरा
हर प्राण हिंदवासी ।
हिंदी की सरहद का
नहीं कोई ओ र छोर ।
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अब छोड़ दो शगुफ़े,
बातों से बाज़ आ ओ ।
हमको बोलने दो
अब ओर न चलाओ ।
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