Mar 26, 2013
Mar 25, 2013
मद्रास उच्च न्यायालय में तमिल में न्याय हो
इससे जुड़ी कुछ खबरें नीचे दिए लिंक्स पर
http://dainik cebook
अज्ञेय जी की कुछ कविताएँ
[ ये कविताएँ ओम थानवी जी ने फेसबुक पर पोस्ट की हैं। वहीं से साभार]
(सफर
में अज्ञेय का सारा काव्य फिर पढ़ गया। देखिए, ये कविताएँ भी अज्ञेय की ही हैं। लेकिन जिन्हें ऐसी
रचनाओं को नजरअंदाज करना है, वे
इनको देखकर भी नहीं देखेंगे! (बरसों-बरस यही तो करते करते आए हैं! - ओम थानवी)
हरा-भरा है देश
----------
हरे-भरे हैं खेत
मगर खलिहान नहीं:
बहुत महतो का मान --
मगर दो मुट्ठी धान नहीं।
भरा है दिल
पर नीयत नहीं:
हरी है कोख --
तबीयत नहीं।
भरी हैं आंखें
पेट नहीं:
भरे हैं बनिये के कागज --
टेंट नहीं।
हरा-भरा है देश
----------
हरे-भरे हैं खेत
मगर खलिहान नहीं:
बहुत महतो का मान --
मगर दो मुट्ठी धान नहीं।
भरा है दिल
पर नीयत नहीं:
हरी है कोख --
तबीयत नहीं।
भरी हैं आंखें
पेट नहीं:
भरे हैं बनिये के कागज --
टेंट नहीं।
Mar 17, 2013
दालचीनी और शहद की दरियादिली
अङ्ग्रेज़ी में यह पोस्ट फेसबुक पर मिली। एंटोनिओ रॉबर्ट्स की इस पोस्ट को डॉ उदय बोधंकर ने आगे बढ़ाया था। मैंने फिर कई हिन्दी वेब पृष्ठों पर भी दालचीनी और शहद के कमाल का विस्तृत विवरण देखा। यदि यह उपयोगी लगे तो किसी संभावित खतरे की ज़िम्मेदारी स्वयं लेते हुए आज़माएँ।
Cinnamon and Honey
Drug companies won't like this one getting around. Facts on
Honey and Cinnamon:
It is found that a mix of honey and Cinnamon cures most
diseases. Honey is produced in most of the countries of the world. Scientists
of today also note honey as very effective medicine for all kinds of diseases.
Honey can be used without side effects which is also a plus. Today’s science
says that even though honey is sweet, when it is taken in the right dosage as a
medicine, it does not harm even diabetic patients. Researched by western
scientists:
Mar 12, 2013
अङ्ग्रेज़ी को अन्य भारतीय भाषाओं की कीमत पर नहीं रखा जाना चाहिए
चेन्नई से तिरुच्चिरापल्ली और फिर मदुरै...और
उसके आगे भी - इन सभी स्थानों पर अधिकांश
व्यापारी उत्तर भारतीय हैं और उनमें से 99 प्रतिशत तमिल और हिन्दी जानते हैं। उन्हें किसी त्रिभाषा सूत्र
ने तमिल सीखने को मजबूर नहीं किया बल्कि यह उनके व्यापार की मांग अर्थात जरूरत है ।
शिक्षा का प्रसार उन्नीसवीं और बीसवीं सदी में अधिकांशत: समुद्र तटीय क्षेत्रों मे मिशनरी स्कूलों के माध्यम
से हुआ। आजादी के समय हमारे देश में साक्षारता का प्रतिशत मात्र 16 या 17 प्रतिशत
था। अधिकांश शिक्षित समुद्र तटीय इलाकों विशेषकर तत्कालीन मद्रास प्रांत में
साक्षारता दर पूरे देश के औसत की तुलना में कहीं ज्यादा थी। सन् 1901 में जब पूरे
देश की साक्षारता दर का औसत लगभग 6 प्रतिशत था तब मद्रास प्रांत में यह लगभग 12
प्रतिशत था। महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, पॉण्डिचेरी और तमिलनाडु के समुद्र तटीय क्षेत्रों में शिक्षा का
प्रचार-प्रसार तुलनात्मक रूप से सर्वाधिक हुआ। अंग्रेज़ जब प्रशासनिक कार्यालय कलकत्ता यानी बंगाल ले गए
तो वहाँ भी अङ्ग्रेज़ी तथा साक्षारता दर दोनों में तेजी से वृद्धि हुई। आज भी अगर
हम 2011 की जनगणना के आंकड़े देखें तो तथाकथित उत्तर भारतीयों
याकि हिन्दी भाषी क्षेत्रों की साक्षारता दर 75 प्रतिशत से कम है।
Mar 11, 2013
परमपूज्य डॉ बाबा साहेब अंबेडकर ने कहा था-
" एक भाषा जनता को एक सूत्र में बांध सकती है। दो भाषाएं निश्चित ही जनता में फूट डाल देंगी। यह एक अटल नियम है। भाषा, संस्कृति की संजीवनी होती है। चूंकि भारतवासी एकता चाहते हैं और एक समान संस्कृति विकसित करने के इच्छुक हैं, इसलिए सभी भारतीयों का कर्तव्य है कि वे हिंदी को अपनी भाषा के रूप में अपनाएँ। "
(डा.अंबेडकर संपूर्ण वाङ्मय, खंड एक, पृष्ठ 178..प्रकाशक-कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार )
क्या संघ की राजभाषा अँग्रेजी है!
(लाखों प्रत्याशियों में से सात-आठ सौ लोग संघ लोक सेवा आयोग ने सिविल सेवा परीक्षा द्वारा चुने जाते हैं। इनमें प्रतिभा की कमी तो नहीं हो सकती है। इन्हें चयनित होने के बाद कई भाषाएँ सिखाई जाती हैं और उच्च बौद्धि क्षमता वाले व्यक्ति होने के कारण उन्हें इन भाषाओं को सीखने में कोई कठिनाई भी नहीं होती। यदि ये हिन्दी, तमिल, मलयालम और अन्य सभी भारतीय भाषाएँ, यहाँ तक की विदेशी भाषाएँ भी सीखने की योग्यता रखते हैं तो फिर दसवीं स्तर की अँग्रेजी चयन के बाद सीखने में क्या समस्या हो सकती है?)
क्या अँग्रेजी विद्वता की निशानी है? विद्वान तो कोई भी हो सकता है मगर जीनियस (genius) होने के लिए क्या अँग्रेजी की चाशनी में डुबकी लगाए बिना बात नहीं
बनती? क्या भारतीय भाषाओं में वह बात नहीं है जो किसी को जीनियस बना सके? क्या सरकारी सेवा
में ऐसे जीनियसों की जरूरत होती है जो और कोई भाषा जाने या न जाने मगर अँग्रेजी
में पारंगत जरूर हों? संविधान (राष्ट्रपति का आदेश) के अनुसार केंद्रीय सरकार के सभी कार्मिकों
को हिंदी का ज्ञान जरूर होना चाहिए तो फिर बड़ी नौकरी के लिए अँग्रेजी और मैकाले की
मानसिकता क्यों जरूरी है? क्या त्रिभाषा सूत्र सभी भारतीय विद्यालयों, पाठशालाओं, शिक्षा बोर्डों में
लागू है? क्या सभी सरकारी स्कूलों में अँग्रेजी पढ़ाने की व्यवस्था है? भारतीय भाषाओं के
माध्यम से स्कूली शिक्षा की व्यवस्था का प्रतिशत क्या है? ऐसे अनेक प्रश्न
हैं जो मेरे हिन्दी माध्यम से आधे-अधूरे विकसित दिमाग में कई दिनों से कुलबुला रहे
हैं। मेरे पास इनमें से किसी भी प्रश्न का कोई स्पष्ट उत्तर नहीं है।
स्त्री शोषण : जिम्मेदार कौन !! -डॉ. राम भरोसे
(फेसबुक से साभार )
***
आज 'विश्व महिला दिवस' पर एक घटना, जो आज ही व्यक्तिगत रूप से मेरे साथ घटित हुई या यूं कहिए कि इस घटना
का जानकार भी मैं ही हूँ, आप मित्रों से साझा करना चाहता हूँ। शायद इस घटना को जानने के बाद आज
मनाया जा रहा ' विश्व महिला दिवस' सिर्फ एक दिवस मात्र लगने लगेगा।
हुआ यूं कि आज जब मैं अपने कॉलेज से वापस ऑटो मे आ रहा था, तो उस ऑटो मे लगभग
९-१० वर्ष की एक बच्ची भी बैठी थी और उसके कंधो पर एक भरी भरकम बेग था। यानि कि वो
अपने स्कूल से छुट्टी होने पर वापस आ रही थी। पहले मैंने सोचा कि इस बच्ची (रिया)
के साथ इसकी माँ या पिता दोनों मे से कोई साथ होगा। परंतु मुझे कोई उसके साथ वाला
नहीं दिखा वो मेरे बिलकुल पास ही बैठी थी और कुछ डरी और सहमी से वो मुझे लगी।
मैंने बच्ची से पूछा बेटा आपके पापा या मम्मी कहाँ है? उसने कुछ डरे से
स्वर मे कहा कि "पापा तो ड्यूटि और मम्मी घर पर हैं।" मैंने फिर पूछा कि
"आपको स्कूल से आज कोई लेने नहीं आया?"
उसे कहा अंकल जी मैं रोज ऐसे ही स्कूल से वापस
आती हूँ अकेले..." मैं सुनकर हतप्रभ रह गया। फिर मैंने पूछा कि बेटा मम्मी
लेने नहीं आती....??? इस प्रश्न को पूछकर मैं खुद बहुत पछताया और मन ही मन सोचा कि आज जो
महिला दिवस मनाया जा रहा है, वो केवल एक दिखावा सा लगता है। और उस कडवे सच को सुनने के बाद यह बात
पुष्ट हो जाती है कि आज महिलाओ के शोषण मे पुरुष से जायदा खुद स्त्रियाँ जिम्मेदार
हैं। और इसका प्रारम्भ घर से ही होता है।
Mar 7, 2013
अज्ञेय के जन्मदिन पर गद्यकोश के लिंक
आज सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन "अज्ञेय" जी का जन्मदिन है। अज्ञेय जी के उपन्यास 'शेखर-एक जीवनी', 'नदी के द्वीप', 'अपने-अपने अजनबी' और 'बीनू भगत' जिन्होंने नहीं पढ़े हैं वे गद्यकोश पर भी इन्हें पढ़ सकते हैं। अज्ञेय जी का लगभग समस्त गद्य साहित्य गद्यकोश पर उपलब्ध है। संबंधित पृष्ठ का लिंक नीचे दिया जा रहा है -
(गद्यकोश से साभार)
Mar 5, 2013
सुलगना उसकी फितरत है
साँच को आंच हो न हो
सुलगना उसकी फितरत
है
झूँठ बेशर्मी की
गठरी
बंधी तो भी बहुत
भारी
खुली तो भी बहुत
भारी
-अजय मलिक (c)
Mar 3, 2013
हिंदी की तीन विभूतियाँ- ओम थानवी
(आज सुबह फेसबुक पर ओम थानवी
की टिप्पणी के साथ यह दुर्लभ चित्र एक मित्र द्वारा साझा किए मिले। अज्ञेय
जी पर कुछ भी नया-पुराना मिलना मेरे लिए किसी लाटरी से कम नहीं है। साभार यह पोस्ट
यहाँ दी जा रही है )
हिंदी की तीन
विभूतियों का एक दुर्लभ और अब तक अप्रकाशित चित्र: ( बाएं से ) फणीश्वरनाथ रेणु, स.
ही. वात्स्यायन अज्ञेय और प्रफुल्लचंद्र ओझा मुक्त। तस्वीर सम्भवतः पटना रेलवे
स्टेशन पर ली गई थी। हिंदी के छुआछूत सम्प्रदायों की परवाह न कर रेणु अज्ञेय के
घोर प्रशंसक रहे। अज्ञेय जब 'दिनमान' के
लिए रेणु को साथ लेकर बिहार के सूखे की रिपोर्टिंग को निकले, तब रेणुने एक लम्बा रिपोर्ताज अज्ञेय के व्यक्तित्त्व और कार्यशैली पर ही
लिख दिया था। अज्ञेय भी रेणु के बड़े प्रशंसक थे। रेणु अज्ञेय से दस वर्ष छोटे थे,
पर दस वर्ष पहले (1977 में) चल बसे। तब अज्ञेय
ने प्रेमचंद, निराला आदि अग्रजों पर लिखे
"स्मृतिलेखा" पुस्तक के अपने संस्मरणों में एक संस्मरण अनुज रेणु पर भी
लिखा: "धरती का धनी"... परती परिकथा के महान सृजक को हिंदी साहित्य में
यह अनूठी श्रद्धांजलि मानी जाती है।
-ओम थानवी
Mar 2, 2013
धूप खिली देखकर...
हर घड़ी आजकल
हर ओर शून्य सा
क्यूँ उघड़ जाता है
सूरज में अँधेरा सा
चाँद नज़र आता है
धूप खिली देखकर
क्यूँ मन घबराता है



