Feb 22, 2011

युनाइटेड इंडिया के हिंदी अधिकारियों की कार्यशाला : केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण उपसंस्थान, चेन्नै की एक और उपलब्धि







केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण उपसंस्थान, चेन्नै के लीला हिंदी कंप्यूटर केंद्र में दिनांक 21.02.2011 से 22.02.2011 तक युनाइटेड इंडिया इंश्योरेंश कं0 लि0 के देश के विभिन्न प्रांतों से आए हिंदी अधिकारियों के लिए "हिंदी एवं इंडिक यूनिकोड" विषय पर दो दिवसीय हिंदी कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस दौरान युनाइटेड इंडिया इंश्योरेंश के 21 क्षेत्रीय कार्यालयों से आए प्रतिभागियों ने निम्नलिखित विषयों का व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया-

1. हिंदी एवं इंडिक यूनिकोड परिचय एवं विभिन्न विंडोज में सक्रियता,

2. कंप्यूटर हार्डवेयर-सॉफ्टवेर एवं इंडिक के साथ विंडोज इन्स्टालेशन,

3. हिंदी ई-लर्निंग एवं एवं भारतीय भाषाओं में ई-मेल,

4. एम एस ऑफिस,(वर्ड, एक्सेल व पावर पाइंट ) में इंडिक एवं हिंदी यूनिकोड का प्रयोग,

5. विभिन्न यूनिकोड एवं लिपि परिवर्तक

लगभग 25 प्रतिभागियों ने इस कार्यशाला में भाग लिया। सभी प्रतिभागियों ने प्रशिक्षण को बेहद उपयोगी बताया। साथ ही उन्होंने और अधिक प्रेक्टिकल्स व अभ्यास के लिए समय दिए जाने तथा विंडोज एक्स पी तथा विंडोज 2000 ऑपरेटिंग सिस्टम वाले कुछ कंप्यूटरों की भी उपलब्धता सुनिश्चित किए जाने का सुझाव दिया।

कार्यशाला का उद्घाटन युनाइटेड इंडिया इंश्योरेंश मुख्यालय के महाप्रबंधक ने किया तथा व्याख्याता थे श्री अजय मलिक, श्री ई गुरूप्रसाद तथा श्रीमती प्रतिभा मलिक।


  

Feb 20, 2011

तमिलनाडु जितनी ईमानदारी हिंदी के प्रति कहीं नहीं है

मैं एक दिल्ली में रहने वाले ऐसे सज्जन को जानता हूँ जो हमेशा किसी भी सुधारात्मक प्रक्रिया की प्रतिक्रिया में रटा-रटाया जवाब देते हैं -"अरे साहब, ऐसा करने से तमिलनाडु में हंगामा हो जाएगा।" उनके इस उत्तर से उनका कितना हित होता है ये तो वे ही बता सकते हैं मगर इससे हिन्दी का तो कोई हित होता मुझे नज़र नहीं आता। मुझे हैरानी होती है कि हिन्दी के प्रचार-प्रसार का तथाकथित बीड़ा उठाने वाले लोग तमिलनाडु में हिंदी के नाम से इतने अधिक क्यों डरते हैं?

आज पदमश्री डॉ रामासामी जी से एक बार फिर मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पिछले कई वर्षों से वे सचिव, भारत सरकार के पद पर आसीन हैं और आज भी उनकी सरलता मन मोह लेती है। एक महान वैज्ञानिक के साथ-साथ वे संस्कृत के प्रकांड पंडित कहे जा सकते हैं। उन्होंने केंद्रीय चर्म अनुसंधान संस्थान यानी सी एल आर आई, चेन्नई में कई वर्षों तक  बड़े-बड़े वैज्ञानिकों के लिए हिंदी भाषा का प्रशिक्षण आयोजित करवाया। मुझे और श्रीमती प्रतिभा मलिक को वह प्रशिक्षण चलाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।  यह प्रशिक्षण कई अर्थों में लीक से हटकर था। देश भर में यह दूसरा प्रशिक्षण केंद्र था जहां हिंदी भाषा का प्रशिक्षण कंप्यूटर-इन्टरनेट और एल सी डी प्रोजेक्टर के माध्यम से चला।

उल्लेखनीय है कि हमारे देश में सबसे पहला कंप्यूटर-प्रोजेक्टर आधारित हिंदी भाषा प्रशिक्षण केंद्र भी वर्ष 2001 में चेन्नई में ही शुरू हुआ था और इसे शुरू करने सौभाग्य भी संयोग से मुझे ही प्राप्त हुआ। चेन्नई में एक जगह है पल्लीकर्णी और वहाँ एक बहुत बड़ा परिसर है- एन आई ओ टी का... इसी परिसर में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय का एक छोटा सा कार्यालय और भी है -आई सी एम ए एम जिसे हम लोग इकमाम भी कहते हैं, यह वही कार्यालय है जहां हिंदी भाषा का पहला कंप्यूटर-एल सी डी प्रोजेक्टर आधारित सरकारी प्रशिक्षण केंद्र चला। उसके बाद सी एल आर आई... फिर आई आई टी मद्रास...बी ई एल मद्रास...ई टी डी सी और फिर राजाजी भवन, बेसंट नगर,  मद्रास...

क्या देश में तमिलनाडु के बाहर  किसी शहर में कोई और ऐसी जगह है जहां हिन्दी शिक्षण योजना के हिन्दी भाषा के कंप्यूटर-इन्टरनेट-एलसीडी प्रोजेक्टर आधारित इतने सारे केंद्र बिना किसी बाधा के चले हों?  

बहुत कम लोग यह जानते हैं कि हिन्दी प्राध्यापकों के मामले में माननीय मद्रास उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने अप्रेल 2009 में याचिकाकर्ता श्रीमती प्रतिभा मलिक को निर्देश दिया कि मामला हिन्दी प्राध्यापकों से संबन्धित है अत: क्यों न बहस भी हिन्दी में की जाए। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह था कि खंडपीठ के दोनों माननीय न्यायाधीशों और याचिकाकर्ता में से  किसी की भी मातृभाषा हिन्दी नहीं थी। देश के इतिहास में पहली बार 9 अप्रेल 2009 को मद्रास उच्च न्यायालय में लगभग 10 मिनट तक हिन्दी  में बहस हुई और उसके बाद मिश्रित भाषा में। 

इतना सब होने के बाद भी कहीं कोई समस्या नहीं हुई कोई हंगामा नहीं हुआ। वर्ष 2006-07  में मदुरै में राजभाषा हिन्दी के कार्यक्रमों में 250 से 300 तक प्रतिभागी शामिल हुए और तीन स्थानीय टीवी चैनलों ने उस कार्यक्रम को रिकार्ड किया। कोई हंगामा नहीं हुआ।

इतने पर भी अगर कोई हिन्दी के बहाने तमिलनाडु पर अंगुली उठाता है तो वह अपेक्षा से कम ईमानदार है। सच्चाई यह है कि तमिलनाडु जितनी ईमानदारी हिंदी के प्रति देशभर में कहीं नहीं है।

-अजय मलिक

Feb 16, 2011

हिंदी और मलयालम में आन फ़िल्म का एक गीत

तुझे खो दिया हमने पाने के बाद हो – 2

तेरी याद आई… तेरी याद आई- तेरे जाने के बाद
तेरी याद आई
तुझे खो दिया हमने

मिला था ना जब तक जुदाई का गम
मोहब्बत का मतलब ना समझे थे हम
तड़पने लगे तीर खाने के बाद तड़पने लगे
तड़पने लगे तीर खाने के बाद
तेरी याद आई… तेरी याद आई- तेरे जाने के बाद
तेरी याद आई
तुझे खो दिया हमने


निगाहों में अब तू सामने लगा
तेरा नाम होठों पे आने लगा
हुए हम तेरे एक ज़माने के बाद
हुए हम तेरे
हुए हम तेरे एक ज़माने के बाद
तेरी याद आई… तेरी याद आई- तेरे जाने के बाद
तेरी याद आई
तुझे खो दिया हमने


मोहब्बत मिली और तू खो गया तू खो गया
ओह बदलते ही किस्मत यह क्या हो गया क्या हो गया
खुशी छिन गयी दिल लगाने के बाद
खुशी छिन गयी
खुशी छिन गयी दिल लगाने के बाद
तेरी याद आई… तेरी याद आई- तेरे जाने के बाद
तेरी याद आई

തുജ്ഹെ   ഖോ ഡിയ ഹംനേ പാനേ കെ ബാത്‌ ഹോ– 2

തെറി യാത് ആയി… തെറി യാത് ആയി- ടേറെ ജാനേ കെ ബാത്‌
തെറി യാത് ആയി
തുജ്ഹെ ഖോ ഡിയ ഹംനേ


മില ത ഞ ജബ് ടക്‌ ജൂഡാി ക ഗം
മോഹബ്ബത്‌ ക മാത്ലബ് ഞ സാംച്േ തെ ഹം
താടപ്നേ ലാജ് തീര്‍ ഖാനെ കെ ബാത്‌ താടപ്നേ ലാജ്
താടപ്നേ ലാജ് തീര്‍ ഖാനെ കെ ബാത്‌
തെറി യാത് ആയി… തെറി യാത് ആയി- ടേറെ ജാനേ കെ ബാത്‌
തെറി യാത് ആയി
തുജ്ഹെ ഖോ ഡിയ ഹംനേ



നികാഹോന്‍ മീന് അബ്‌ ടു സാമാനെ ലാക
ടെറാ നാം ഹോത്ോണ് പെ ആനെ ലാക
ഹ്യൂയേ ഹം ടേറെ ഏക് സേമാനേ കെ ബാത്‌
ഹ്യൂയേ ഹം ടേറെ
ഹ്യൂയേ ഹം ടേറെ ഏക് സേമാനേ കെ ബാത്‌
തെറി യാത് ആയി… തെറി യാത് ആയി- ടേറെ ജാനേ കെ ബാത്‌
തെറി യാത് ആയി
തുജ്ഹെ ഖോ ഡിയ ഹംനേ


മോഹബ്ബത്‌ മിലി ഔര്‍ ടു ഖോ ഗായാ ടു ഖോ ഗായാ
ഓ ബദല്‍ടെ ഹി കിസ്മറ്റ് യ് ക്യാ ഹോ ഗായാ ക്യാ ഹോ ഗായാ
ഖൂശി ച്ചിന്‍ ഗായി ഡില്‍ ലകാണെ കെ ബാത്‌
ഖൂശി ച്ചിന്‍ ഗായി
ഖൂശി ച്ചിന്‍ ഗായി ഡില്‍ ലകാണെ കെ ബാത്‌
തെറി യാത് ആയി… തെറി യാത് ആയി- ടേറെ ജാനേ കെ ബാത്‌
തെറി യാത് ആയി

Feb 9, 2011

मान जब हार लेता हूं तभी उम्मीद दिखती है

एक ग़ज़ल या गीत मुझे ई मेल से अग्रेषित होकर आया है. रचयिता का नाम नहीं दिया गया है. मुझे भी रचनाकार का पता नहीं है लेकिन इसे पढ़ना अच्छा लगा आप भी अपनी अवश्य राय दें -

कभी मिलती हैं मांगे से, कभी बिन चाह मिलती हैं,
अजब है ज़िन्दगी, हर मोड़ पर दो राह मिलती हैं..

चलूं गर राह पर दिल की, तो मिलती ठोकरें हर दम,
बढ़ाऊं होश से कदमों को तो भी है मिले बस ग़म,

जलाकर रूह को, दिल से निकलती आह चलती हैं,
अजब है ज़िन्दगी, हर मोड़ पर दो राह मिलती हैं..

मोहब्बत उनसे करते हैं, बड़ी मुश्किल से बतलाया,
सुना इनकार जो, दिल को बड़ी मुश्किल से समझाया,

मगर उन ही से टकराती मेरी हर राह चलती है,
अजब है ज़िन्दगी, हर मोड़ पर दो राह मिलती हैं..

ज़रूरत से कभी दे ज़्यादा, वो विश्वास देता है,
कभी बस भूख देता है, उबलती प्यास देता है,

बढ़ाऊं या मैं रोकूं जो दुआ में बांह चलती हैं..
अजब है ज़िन्दगी, हर मोड़ पर दो राह मिलती हैं..

मान जब हार लेता हूं तभी उम्मीद दिखती है,
कई रमज़ान गुज़रें साथ तब इक ईद दिखती है,

मनाऊँ मौत को तो जीने की फिर चाह पलती है,
अजब है ज़िन्दगी, हर मोड़ पर दो राह मिलती हैं..

कभी मिलती हैं मांगे से, कभी बिन चाह मिलती हैं,
अजब है ज़िन्दगी, हर मोड़ पर दो राह मिलती हैं..

Feb 8, 2011

यह शोक की घड़ी है

                                                                                                                                                                 श्री केवल कृष्ण के साथ स्वर्गीय शमशेर अहमद खान    

                                                                                                       
          
एक सहकर्मी मित्र श्री शमशेर अहमद खान के असामयिक निधन पर हम सब शोकग्रस्त हैं तथा दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। केंद्रीय हिन्दी प्रशिक्षण संस्थान के सहायक निदेशक श्री शमशेर अहमद खान अब हमारे बीच नहीं रहे।  

Feb 7, 2011

मूल्यांकन रिपोर्ट

राजभाषा विभाग,गृह मंत्रालय की वेब साइट से साभार

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Feb 6, 2011

अँधियारा मिटाते-मिटाते मिट जाता है उजाला !

कितने लोग, कितने विचार और कितनी कहानियाँ...बस यूंही एक विचार सा आया... अचानक एक पत्रकार मित्र की याद आई...पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट में मुलाक़ात हुई थी। टाइम्स ऑफ इंडिया में काफी गंभीर लेख छपते थे उनके... करीब 15 वर्ष पहले फोन पर बात हुई थी...मुंबई से वे दोनों पति-पत्नी कार में पूरे केरल की यात्रा करके लौटे थे...

आज अचानक नाम याद आया तो फेसबुक पर ढूंढ बैठा...पता चला दोनों कैलिफोर्निया में यू एन करी नाम से कैटरिंग का व्यापार कर रहे हैं। कई किताबें हैं उनकी स्वादिष्ट भोजन और पकवानों पर... थ्री इडियट्स फिल्म की याद ताज़ा हो गई... हमें करना वही चाहिए जिसे करने में मज़ा आए।

एक और मित्र आई आई टी के श्रेष्ठ विद्यार्थी आजकल अचल संपत्ति का व्यापार कर रहे हैं जिसे प्रॉपर्टी बिजनेस भी कहते हैं... बता रहे थे यह प्रॉपर्टी 95 लाख की है और ये तीन करोड़ की, सिर्फ 10 प्रतिशत प्रीमियम चाहिए। मैं इन्हीं विचारों में खोया हूँ और अपना हिसाब-किताब देख रहा हूँ। पी एफ के अलावा और कोई छलावा नहीं, नकदी के नाम पर कुछेक हज़ार रुपए... हिंदी के अलावा कोई और लगाव नहीं... हिंदी की वजह से जाने कितने लोगों से अलगाव।

एक वरिष्ठ गुरु मित्र ने दस दिन पहले बताया था “अधिकांश वीरता चक्र मरणोपरांत मिलते हैं...जीने का मोह है तो चक्रों का चिंतन छोड़ दो।” एन सी ई आर टी ने तो पूरी कोशिश की थी मुझे एक अच्छा परामर्शदाता बनाने की...तब मुझे भी लगता था कि मैं लोगों का मनोविज्ञान समझने लगा हूँ...मगर आज लगता है कि मुझसे ज्यादा अनपढ़-गवार कोई नहीं है और सबसे ज्यादा परामर्श की जरूरत शायद मुझे ही है।

मैं घर का बल्ब बदलने से लेकर पंखे फिट करने तक का सारा बिजली का काम कर लेता हूँ, मौंके-बेमौके प्लम्बिंग में भी हाथ आज़मा लेता हूँ। खेती करने, हल जोतने, गुड बनाने, थ्रेशर चलाने, डीजल इंजिन की मरम्मत करने, कंप्यूटर के हिस्से-पुर्जे लाकर जोड़ने और उल्टे-सीधे सॉफ्टवेयर लगाकर चालू करने का काम मैं कर लेता हूँ। खिचड़ी बनाने का बहुत लंबा अनुभव है मेरे पास और मेरी बनाई खिचड़ी खाने वालों में चाणक्य फेम डॉ चन्द्रप्रकाश से लेकर ‘ये साली ज़िंदगी’ के इरफान खान तक शामिल हैं।

इतने पर भी मैं हिंदी-हिंदी के अलावा कुछ भी नहीं कर पा रहा हूँ और इस काम में भी मैं प्रामाणिक सफलता से दूर ही नहीं, बहुत दूर हूँ। हाँ, दुश्मनों की एक इतनी लंबी कतार जरूर है जो शुरू होती तो दिखाई देती है मगर कहाँ तक जाती है यह नज़र नहीं आता...शायद आसमान तक है इसकी लंबाई।

क्या मैं आज अपने हिंदीग्रस्त व्यक्तित्व को बदल सकता हूँ...क्या मैं पचास की उम्र में इस रोग का इलाज कर सकता हूँ याकि कहीं कोई ऐसा डॉक्टर है जो इस लाइलाज बीमारी का इलाज कर सकता है? अगर नहीं तो मुझे अपने आपको स्वीकारना होगा और अपनी इस बीमारी को वरदान समझते हुए सहजता से जीना होगा क्यों कि ऐसा ना करने पर मेरा व्यक्तित्व पूरी तरह विखंडित हो जाएगा। एक सिपाही को मृत्यु के भय से फ्रंट से भागना शोभा नहीं देता, उसे तो सिर्फ अपना युद्ध करने का कर्तव्य पूरा करना है, वह सीमा पर दुश्मन की फौज से किसी चक्र की प्राप्ति के लिए नहीं लड़ता बल्कि अपने धर्म के पालन के लिए लड़ता है। उसके जीवन का उद्देश्य ही अपने धर्म अपने कर्तव्य के लिए, अपनी मातृभूमि के लिए जीवन न्यौछावर कर देना है। वह यह नहीं देखता कि दूसरे सिपाही क्या कर रहे हैं। उसे हार जीत की भी चिंता नहीं है, उसे सिर्फ लड़ते जाना है जब तक लड़ने की शक्ति है... चेतना है।

क्या लड़ाइयाँ केवल किसी युद्ध को जीतने के लिए लड़ी जाती है? लड़ने वाला यूंही तो नहीं लड़ता और लड़ने वाले दोनों–तीनों या चारों अपनी-अपनी सोच के अनुसार सही काम कर रहे होते हैं। छोटी-छोटी लड़ाइयाँ कब युद्ध बन जाती हैं...और कितने दुश्मन हमला करने निकाल पड़ते हैं... एक छोटा सा बेक्टीरिया कितनी जल्दी अरबों की फौज खड़ी कर लेता है...उससे लड़ने के लिए शरीर को कितने एंटीबायोटिक्स की जरूरत पड़ती है। शरीर का धर्म है बेक्टीरिया से लड़ना उधर बेक्टीरिया का धर्म है शरीर को समाप्त करना...

कुछ लड़ाइयाँ बल्कि अधिकांश लड़ाइयाँ हारने के लिए ही लड़ी जाती हैं...उन्हें हार जाने में ही सबसे बड़ी जीत होती है...महाभारत के पात्र भीष्म पितामह न चाहते हुए भी पूरी ईमानदारी से कौरवों की ओर से लड़ते हैं...वे युद्ध की परिणति अच्छी तरह से जानते हैं मगर ये भी जानते हैं कि युद्ध के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं है। वे जानते हैं कि उनकी मृत्यु इसी महाभारत में छुपी है मगर वे ये भी जानते हैं कि हस्तिनापुर की रक्षा के लिए उनकी मृत्यु भी उतनी ही आवश्यक है जितना उनका जीवन। वे जीते हैं तो हस्तिनापुर के लिए और मरते हैं तो भी हस्तिनापुर के लिए... महाभारत की परिणति धृतराष्ट्र और दुर्योधन भी जानते हैं मगर उस परिणति तक पहुँचने के लिए ही तो वे जन्मे थे। युद्ध के बिना उनके जीवन का उद्देश्य कैसे पूरा हो सकता था?

गलतियाँ पांडव भी करते हैं क्योंकि उन गलतियों के बिना कथा पूरी नहीं होती...महाभारत नहीं होता। -और अगर महाभारत नहीं है तो फिर न पांडवों का कोई अस्तित्व है न ही कौरवों का।

एक लड़ाई है जो अन्याय के विरोध में है...एक लड़ाई है जो अहम के पक्ष में है। प्रेशर कुकर का प्रेशर एक हद से अधिक बढ़ जाने पर कुकर को फाड़ देता है...सारे पके-पकाए चावल पूरी रसोई में बिखर जाते हैं। खाद्य अखाद्य हो जाता है। प्रेशर कुकर में उतना ही प्रेशर उचित है जितना चावल पकाने के लिए चाहिए उससे ज्यादा प्रेशर निकाल दिया जाता है और सीटी की आवाज और संख्या यह संकेत करती है कि बस अब बहुत हो गया, गैस बंद कीजिए और कुकर को चूल्हे से उतार लीजिए।

न्याय-अन्याय की भी हरेक की अपनी परिभाषाएं हैं। अन्याय अगर जीतता भी है तो खुद नाकों चने चबाने के बाद ही जीतता है। अन्याय को भी अपने अस्तित्व का अंदाज लग जाता है। न्याय अगर हारता भी है तो अन्याय को थकाकर ही हारता है। अन्याय की तुलना अंधेरे से की जा सकती है और न्याय की एक दीपक से। अंधेरा जो सर्वव्यापीहै, सबसे बड़ी ऊर्जा है... जिसे सूरज जैसी छोटी-छोटी ऊर्जाए मिटाने की कोशिश करती हैं और फिर स्वयं ही ब्लैक होल का निवाला बनकर अंधकार की बड़ी ऊर्जा का हिस्सा बन जाती हैं। यह एक ऐसी सच्चाई है जिसे स्वीकारना और गले के नीचे उतारना बहुत मुश्किल है मगर जीवन भी तो एक इसी तरह की सच्चाई है जिसे अंतत: काल का ग्रास बनना ही है मगर जीते जी मृत्यु से लड़ना ही तो शरीर का कर्म है, यही तो धर्म है। उजाला, अँधियारा मिटाते-मिटाते मिट जाता है। अँधियारे को उजाला चुनौती तो दे सकता है मगर मिटा नहीं सकता क्योंकि उजाले को भी तो अंतत: अँधियारे के आगोश में समा जाना है।
-अजय मलिक



Feb 4, 2011

प्रबोध अभ्यास पुस्तिका आधारित रिक्त स्थान भरने संबंधी अभ्यास

यहाँ दिए गए सभी अभ्यास हम दुबारा दे रहे हैं।
FILL IN THE BLANKS

P.No 17
मुझे नई नई जगहें देखना पसंद है‎1 घूमने के लिए समय और धन भी चाहिए‎। पहाड़ों पर जाने के लिए गरम कपड़े, विशेष जूते आदि चाहिए‎। मुझे पहाड़ों पर सूर्योदय तथा सूर्यास्त देखना बहुत पसंद है‎। पहाड़ों की सुंदरता को कैद करने के लिए मुझे एक अच्छा कैमरा चाहिए‎

प्रबोध पाठमाला के पाठों पर आधारित प्रश्न एवं उत्तर

TEXUAL QUESTION AND ANSWERS
1. गोपाल वर्मा कौन हैं ?

Ans. गोपाल वर्मा हिंदी प्राध्यापक हैं।

2. कविता कहाँ काम करती है ?

Ans. कविता गृह मंत्रालय में काम करती है।

3. कविता किस पद पर काम करती है ?

Ans. कविता सहायक के पद पर काम करती है।

Feb 3, 2011

प्रबोध के लिए विलोम शब्द एवं वाक्यों में प्रयोग

ANTONYMS AND USE IN HINDI SENTENCES


कभी - कभी X रोज़

Sometimes X daily

मैं रोज़ / कभी कभी पढ़ता हूं।

दिन X रात

Day X Night

आज का दिन / की रात अच्छा/अच्छी है।

प्रबोध के लिए पर्यायवाची शब्द एवं वाक्यों में प्रयोग

यह सामग्री हम दुबारा दे रहे हैं।

SYNONYMS AND USE IN HINDI SENTENCES


रोज़, प्रतिदिन, रोज़ाना

Daily

मैं रोज़ / प्रतिदिन हिंदी पढ़ता हूं।

बेटी - पुत्री

Daughter

मेरी बेटी / पुत्री सुंदर है।

शांतिनिकेतन में



फोटो: (c) अजय मलिक

Feb 2, 2011

पुरानी फ़िल्म देवदास का एक गीत चार भारतीय लिपियों में

जिसे तू क़ुबूल कर ले वो अदा कहाँ से लाऊँ
तेरे दिल को जो लुभा ले वो सदा कहाँ से लाऊँ
जिसे तू क़ुबूल कर ले...

मैं वो फूल हूँ के जिसको गया हर कोई मसल के
मेरी उम्र बह गयी है मेरे आँसुओं में ढल के -2
जो बहार बन के बरसे वो घटा कहाँ से लाऊँ
तेरे दिल को जो...

तुझे और की तमन्ना मुझे तेरी आरज़ू है
तेरे दिल में गम ही गम है मेरे दिल में तू ही तू है -2
जो दिलों को चैन दे दे वो दवा कहाँ से लाऊँ
तेरे दिल को जो...


मेरी बेबसी है ज़ाहिर मेरी आह-ए-बे-असर से
कभी मौत भी जो माँगी तो ना पाई उसके दर से -2
जो मुराद ले के आए वो दुआ कहाँ से लाऊँ
तेरे दिल को जो...

జీసే టూ క్వ్బవొల్ కార్ లే వో ఆడయ కహన్ శె లాఊం
తెరే దిల్ కొ జో లుభా లే వో సదా కహాన్ శె లాఊం
జీసే తూ క్వ్బవొల్ కార్ లే

మైన్ వో ఫూల్ హూన్ కె జిస్కో గయా హార్ కాయ్ మసాల్ కె
మేరీ ఉంర్ బా గాయీ హై మేరే ఆంసుఒన్ మీన్ ఢల్ కె -2
జో బహార్ బాన్ కె బర్సె వో ఘటా కహాన్ శె లాఊణ్
తెరే దిల్ కొ జో...


తూఝే ఔర్ కి తమన్నా ముఝే తెరి ఆయార్స్ హై
తెరే దిల్ మీన్ ఘం హీ ఘం హై మేరే దిల్ మీన్ తూ హీ తూ హై -2
జో దిలొణ్ కొ చైన్ దే దే వో దావా కహాణ్ శె లాఊణ్
తెరే దిల్ కొ జో...

మేరీ బెబసి హై సయాహియర్ మేరీ ఆ-ఏ-బే-ఆసర్ శె
కభి మౌత్ భీ జో మాణ్గి తో న పాయీ ఉస్కే దార్ శె -2
జో మురాద్ లే కె ఆయే వో డూఆ కహాణ్ శె లాఊణ్
తెరే దిల్ కొ జో


ಜಿಸೆ ಟೂ ಕ್ವ್ಬವೊಲ್ ಕರ್ ಲೇ ವೋ ಆಡಯ ಕಹನ್ ಸೆ ಲಾಊನ್
ತೆರೆ ದಿಲ್ ಕೋ ಜೋ ಲುಭಾ ಲೇ ವೋ ಸದಾ ಕಹಾನ್ ಸೆ ಲಾಊನ್
ಜಿಸೆ ಟು ಕ್ವ್ಬವೊಲ್ ಕರ್ ಲೇ

 ಮೇನ್ ವೋ ಫೂಲ್ ಹೂನ್ ಕೆ ಜಿಸ್ಕೊ ಗಯಾ ಹಾರ್ ಕಾಯ್ ಮಸಲ್ ಕೆ
ಮೇರಿ ಉಮ್ರ್ ಬಾ ಗಯೀ ಹೈ ಮೇರೆ ಆಂಸುಒಂ ಮೆಇನ್ ಢಲ್ ಕೆ -2
ಜೋ ಬಹಾರ್ ಬಾನ್ ಕೆ ಬರ್ಸೆ ವೋ ಘಟಾ ಕಹಾನ್ ಸೆ ಲಾಊಣ್
ತೆರೆ ದಿಲ್ ಕೋ ಜೋ...


ತುಜ್ೆ ಔರ್ ಕೀ ತಮಣ್ನಾ ಮುಝೆ ತೇರಿ ಆರ್ಜ಼ೂ ಹೈ
ತೆರೆ ದಿಲ್ ಮೆಇನ್ ಘಾಂ ಹಿ ಘಾಂ ಹೈ ಮೇರೆ ದಿಲ್ ಮೆಇನ್ ಟು ಹಿ ಟು ಹೈ -2
ಜೋ ದಿಲೊಣ್ ಕೋ ಚೈನ್ ದೇ ದೇ ವೋ ದಾವಾ ಕಹಾಣ್ ಸೆ ಲಾಊಣ್
ತೆರೆ ದಿಲ್ ಕೋ ಜೋ...


ಮೇರಿ ಬೇಬಸಿ ಹೈ ಜ಼ಾಹೀರ್ ಮೇರಿ ಆ-ಎ-ಬೇ-ಅಸಾರ್ ಸೆ
ಕಾಭಿ ಮೌತ್ ಭೀ ಜೋ ಮಾಣ್ಗಿ ತೋ ನ ಪಾಯೀ ಉಸ್ಕೇ ಡರ್ ಸೆ -2
ಜೋ ಮೂರಾಡ್ ಲೇ ಕೆ ಆಯೆ ವೋ ಡೂಆ ಕಹಾಣ್ ಸೆ ಲಾಊಣ್
ತೆರೆ ದಿಲ್ ಕೋ ಜೋ


ஜிசே டூ க்வ்பவொல் கார் லே வோ ஆடய கஹான் சே லாூன்
தேரே தில் கோ ஜோ லூபா லே வோ சதா கஹான் சே லாூன்
ஜிசே து க்வ்பவொல் கார் லே


மைந் வோ பூழ் ஹூந் கே ஜிஸ்கொ காயா ஹார் கொய் மசல் கே
மேரி உம்ர் பா கயீ ஹை மியர் ஆன்சுஒன் மென் தாள் கே -2
ஜோ பஹார் பண் கே பார்ஸெ வோ க்ஹடா கஹான் சே லாஊண்
தேரே தில் கோ ஜோ...


தூஜ்ே ஓூர் கி தமன்னா மூஜ்ே தேறி ஆர்ஜூ ஹை
தேரே தில் மென் காம் ஹி காம் ஹை மியர் தில் மென் து ஹி து ஹை -2
ஜோ திலொண் கோ சைன் தே தே வோ தாவா கஹாண் சே லாஊண்
தேரே தில் கோ ஜோ...


மேரி பேபசி ஹை ஜாஹீர் மேரி ஆ-ஏ-பே-ஆசார் சே
காபி மௌட் பி ஜோ மாண்கி தொ நா பாயீ உஸ்கே தார் சே -2
ஜோ முராட் லே கே ஆயே வோ துா கஹாண் சே லாஊண்
தேரே தில் கோ ஜோ

Feb 1, 2011

चार भारतीय लिपियों में फ़िल्म 'अनुराधा' का एक गीत

स्वर्गीय शैलेन्द्र का लिखा फ़िल्म 'अनुराधा' का एक कभी न भुलाए जाने वाला गीत जिसका संगीत पंडित रवि शंकर ने दिया था चार भारतीय लिपियों में प्रस्तुत है-


हाय रे वो दिन क्यूँ ना आए
जा जा के ऋतु, लौट आए

झिल-मिल वो तारे, कहाँ गये सारे
मनबाती जले, बुझ जाए



सूनी मेरी बीना, संगीत बिना
सपनों की माला, मुरझाए

हाय रे वो दिन क्यूँ ना आए


ਹਾਯ ਰੇ ਵੋ ਦਿਨ ਕ੍ਯੂਂ ਨਾ ਆਏ
ਜਾ ਜਾ ਕੇ ਰਿਤੂ, ਲੌਟ ਆਏ



ਝੀਲ-ਮਿਲ ਵੋ ਤਰੇ, ਕਹਾਂ ਗਾਏ ਸਾਰੇ
ਮੰਬਾਤੀ ਜਲੇ, ਬੂਝ ਜਾਏ


ਸੂਨੀ ਮੇਰੀ ਬੀਨਾ, ਸੰਗੀਤ ਬਿਨਾ
ਸਪਨੋਂ ਕੀ ਮਾਲਾ, ਮੁਰਝਹਾਏ


ਹਾਯ ਰੇ ਵੋ ਦਿਨ ਕ੍ਯੂਂ ਨਾ ਆਏ


હાય રે વો દિન ક્યૂઁ ના આયે
ઇયા ઇયા ક રિટ્ચ, લોઉટ આયે

ઝીલ-મિલ વો તારે, કહન ગે સેર
મણબાતી જલે, બૂઝ જે


સૂની મ્રી બીના, સંગીત બીના
સાપનોં કી માળા, મુરઝાયે


હાય રે વો દિન ક્યૂઁ ના આયે


ஹாய் ரே வோ திண் கியூண் நா ஆயே
ஜ ஜ கே ரித்து, லௌஉத் ஆயே


ஜுஹில்-மில் வோ தாரே, கஹான் கே சாறே
மான்பாட்டி ஜாலே, பூஜ ஜே


ஸூநீ மேரி பீண, சங்கீத் பிண
சப்னோன் கீ மால, மூர்சுாயே
ஹாய் ரே வோ திண் கியூண் நா ஆயே