Feb 27, 2010

होली की रंग-बिरंगी शुभकामनाएं.

Feb 23, 2010

Three Idiots

Feb 22, 2010

गीतामृतम् : भोजपुरी में श्रीमद्भगवद्गीता का पद्यानुवाद

कमलाकांत  पाठक न  जाने क्यों 'कमलेश'  बन गए ? 

Feb 18, 2010

प्रवीण नोट्स - 6

प्रवीण पाठ्यक्रम के ये सभी नोट्स हमारी  वरिष्ठ सहयोगी श्रीमती चित्रा कृष्णन द्वारा तैयार किए गए हैं‎।  

CORRECT THE GRAMMAR MISTAKES
गलत (x)                        सही ()

1. आप कहाँ जा रहा है?       गलत
    आप कहाँ जा रहे हैं ?      सही

2. तुम कहाँ रहता है?
   तुम कहाँ रहते हो?

प्रवीण नोट्स - 5

रिक्त स्थान भरिए
(का, के, की, को, से, में, पर, के लिए)

केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान का कार्यालय नई दिल्ली के पर्यावरण भवन में स्थित है। संस्थान के अधीन पॉंच क्षेत्रीय कार्यालय हैं, जिन्हें हिंदी शिक्षण योजना के क्षेत्रीय कार्यालय के रूप में जाना जाता है। राजभाषा विभाग पर राजभाषा नीतियों के अनुपालन की जिम्मेदारी है।

प्रवीण नोट्स - 4

रिक्त स्थान भरिए

1. सभा में भाषण हो रहा होगा‎।

2. इस समय निदेशक दौरे पर जा रहे होंगे‎।

3. छुट्टियों में बच्चे कंप्यूटर सीख रहे होंगे‎।

प्रवीण नोट्स - 3

रिक्त स्थान भरिए
प्रश्न, विलंब, प्रतिभागी, उद्घाटन, विषय
1. मंत्री जी उद्घाटन समारोह में नहीं आ सके‎।।

2. कुछ श्रोता विलंब से पहुँचे‎।

3. वक्ता कई विषयों पर बोले‎।

4. लोगों ने काफी प्रश्न पूछे‎।

प्रवीण नोट्स -2

रिक्त स्थान भरिए


प्रतिकूल, स्थानांतरण, दायित्व, कार्यक्षमता, सहानुभूतिपूर्वक
1. प्रत्येक नागरिक को समाज के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह करना होगा‎।

2. आपके प्रार्थना पत्र पर सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जाएगा‎।

3. सरकारी सेवा में स्थानांतरण होता रहता है‎।

प्रवीण नोट्स -1

हिंदी सर्वनाम + विभक्तियाँ
(ने   को   से   का  के  की   में   पर)


मैं मैंने मुझे/मुझको मुझसे मेरा मेरे मेरी मुझमें मुझ पर


तुम तुमने तुम्हें/ तुमको तुमसे तुम्हारा तुम्हारे तुम्हारी तुममें तुम पर


यह इसने इसे,इसको इससे इसका इसके इसकी इसमें इस पर

Feb 9, 2010

दुष्यंत कुमार की कुछ ग़ज़लें : कविताकोश के सौजन्य से

एक

मत कहो, आकाश में कुहरा घना है,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है ।


सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह से,
क्या करोगे, सूर्य का क्या देखना है ।

इस सड़क पर इस क़दर कीचड़ बिछी है,
हर किसी का पाँव घुटनों तक सना है ।

पक्ष औ' प्रतिपक्ष संसद में मुखर हैं,
बात इतनी है कि कोई पुल बना है

रक्त वर्षों से नसों में खौलता है,
आप कहते हैं क्षणिक उत्तेजना है ।

हो गई हर घाट पर पूरी व्यवस्था,
शौक से डूबे जिसे भी डूबना है ।

दोस्तों ! अब मंच पर सुविधा नहीं है,
आजकल नेपथ्य में संभावना है ।


दो
अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार,
घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तहार।

आप बच कर चल सकें ऐसी कोई सूरत नहीं,
रहगुज़र घेरे हुए मुर्दे खड़े हैं बेशुमार ।

रोज़ अखबारों में पढ़कर यह ख़्याल आया हमें,
इस तरफ़ आती तो हम भी देखते फ़स्ले—बहार ।

मैं बहुत कुछ सोचता रहता हूँ पर कहता नहीं,
बोलना भी है मना सच बोलना तो दरकिनार ।

इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीके—जुर्म हैं,
आदमी या तो ज़मानत पर रिहा है या फ़रार ,

हालते—इन्सान पर बरहम न हों अहले—वतन,
वो कहीं से ज़िन्दगी भी माँग लायेंगे उधार ।

रौनक़े-जन्नत ज़रा भी मुझको रास आई नहीं,
मैं जहन्नुम में बहुत ख़ुश था मेरे परवरदिगार ।

दस्तकों का अब किवाड़ों पर असर होगा ज़रूर,
हर हथेली ख़ून से तर और ज़्यादा बेक़रार।


तीन

होने लगी है जिस्म में जुंबिश तो देखिये,
इस पर कटे परिंदे की कोशिश तो देखिये।

गूँगे निकल पड़े हैं, ज़ुबाँ की तलाश में,
सरकार के ख़िलाफ़ ये साज़िश तो देखिये ।

बरसात आ गई तो दरकने लगी ज़मीन,
सूखा मचा रही है ये बारिश तो देखिये।

उनकी अपील है कि उन्हें हम मदद करें,
चाकू की पसलियों से गुज़ारिश तो देखिये ।

जिसने नज़र उठाई वही शख़्स गुम हुआ,
इस जिस्म के तिलिस्म की बंदिश तो देखिये।

चार

वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है,
माथे पे उसके चोट का गहरा निशान है ।

वे कर रहे हैं इश्क़ पे संजीदा गुफ्तगू
मैं क्या बताऊँ मेरा कहीं और ध्यान है।

सामान कुछ नहीं है फटेहाल है मगर,
झोले में उसके पास कोई संविधान है।

उस सिरफिरे को यों नहीं बहला सकेंगे आप,
वो आदमी नया है मगर सावधान है।

फिसले जो इस जगह तो लुढ़कते चले गए,
हमको पता नहीं था कि इतना ढलान है ।

देखे हैं हमने दौर कई अब ख़बर नहीं,
पैरों तले ज़मीन है या आसमान है।

पांच

वो आदमी मिला था मुझे उसकी बात से,
ऐसा लगा कि वो भी बहुत बेज़ुबान है ।

पक गई हैं आदतें बातों से सर होंगी नहीं,
कोई हंगामा करो ऐसे गुज़र होगी नहीं।

इन ठिठुरती उँगलियों को इस लपट पर सेंक लो,
धूप अब घर की किसी दीवार पर होगी नहीं ।

बूँद टपकी थी मगर वो बूँदो—बारिश और है,
ऐसी बारिश की कभी उनको ख़बर होगी नहीं।

आज मेरा साथ दो वैसे मुझे मालूम है,
पत्थरों में चीख़ हर्गिज़ कारगर होगी नहीं।

आपके टुकड़ों के टुकड़े कर दिये जायेंगे पर,
आपकी ताज़ीम में कोई कसर होगी नहीं।

सिर्फ़ शायर देखता है क़हक़हों की अस्लियत,
हर किसी के पास तो ऐसी नज़र होगी नहीं।