Jan 16, 2010

क्यों यह नहीं हो सकता ?

बुराई के प्रति सकारात्मक सोच की कहीं कोई कमी नहीं है। आपने अक्सर सुना होगा -"यहाँ सब कुछ हो सकता है " "अरे, यहाँ सब चलता है।" मगर एक कोई अच्छी बात यदि किसी ने गलती से भी कह दी तो नकारात्मकता की पराकाष्ठा से रूबरू होने में देर नहीं लगेगी। अजी छोड़िए मियाँ, ये सब गुज़रे जमाने की बातें हैं।

सभी को पोंगल और मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं


जिसको जैसे मिले राम जी उसने वैसे पाए।
जब-जब नैया फँसी भंवर में, तब-तब पार लगाए।
वह सतयुग का दौर आज कलयुग में भी भरमाए।
खाली हांड़ी चढ़ी चूल्हे में किससे आग जलाए ।
दाल-भात का स्वाद याद कर पति-पत्नी मुस्काए।
पानी तक बेमोल कहाँ, फिर कैसे पोंगल खाए ।