Nov 30, 2009

कभी-कभी कोशिशें नाकाम भी होती हैं ...

अचानक जैसे सबकुछ बदल गया । 10 नवम्बर को वादा किया गया था कि गोवा में 23 नवम्बर से 3 दिसंबर तक चलने वाले भारत के चालीसवें अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव की प्रतिदिन की झलकियाँ, फ़िल्म समीक्षाएं आदि नियमित रूप से प्रस्तुत की जाएंगी मगर ठीक उसी दिन से डेंगू की दवाएं ढूढने की विवशता आ पड़ी । 11 नवम्बर की सुबह किसी बेहद अपने ने दुनिया को अलविदा कह दिया। गोवा के लुभावने समुद्र तटों की रेतीली सतहों पर लहराती पार्टियों के गुनगुनाते संगीत और आइनाक्स के रुपहले परदे पर बहुरंगी फिल्मों के ख़्वाब अस्पताल के गहन चिकित्सा कक्ष में कहीं गुम से गए। अब इसे क्या कहिएगा - ईश्वर इच्छा या खुदा की खुदाई ? इस मामले में हमारी कोशिशें , हमारे वादे सब व्यर्थ गए।

Nov 23, 2009

डेंगू का इलाज पपीते के पत्तों के रस से

Dear All

I would like to share this interesting discovery from a classmate's
son who has just recovered from dengue fever. Apparently, his son was
in the critical stage at the SJMC ICU when his pallet counts drops to
15 after 15 litres of blood transfusion. His father was so worried

Nov 16, 2009

अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध की दो कवितायेँ

एक तिनका
मैं घमंडों में भरा ऐंठा हुआ,
एक दिन जब था मुंडेरे पर खड़ा।
आ अचानक दूर से उड़ता हुआ,
एक तिनका आँख में मेरी पड़ा।

मैं झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा,
लाल होकर आँख भी दुखने लगी।
मूँठ देने लोग कपड़े की लगे,
ऐंठ बेचारी दबे पॉंवों भागने लगी।

जब किसी ढब से निकल तिनका गया,
तब 'समझ' ने यों मुझे ताने दिए।
ऐंठता तू किसलिए इतना रहा,
एक तिनका है बहुत तेरे लिए।
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अनूठी बातें
जो बहुत बनते हैं उनके पास से,
चाह होती है कि कैसे टलें।
जो मिलें जी खोलकर उनके यहाँ
चाहता है कि सर के बल चलें॥

सध सकेगा काम तब कैसे भला,
हम करेंगे साधने में जब कसर?
काम आयेंगी नहीं चालाकियाँ
जब करेंगे काम आँखें बंद कर॥

खिल उठें देख चापलूसों को,
देख बेलौस को कुढे आँखें।
क्या भला हम बिगड़ न जायेंगे,
जब हमारी बिगड़ गयी आँखें॥

तब टले तो हम कहीं से क्या टले,
डाँट बतलाकर अगर टाला गया।
तो लगेगी हाँथ मलने आबरू
हाँथ गरदन पर अगर ड़ाला गया॥

फल बहुत ही दूर छाया कुछ नहीं
क्यों भला हम इस तरह के ताड़ हों?
आदमी हों और हों हित से भरे,
क्यों न मूठी भर हमारे हाड़ हों॥
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(कविता कोश के सौजन्य से )

Nov 13, 2009

तो फिर सच क्या है...?

शरीर, आत्मा और चेतना - इनमें से रिश्ता, मोह या लगाव है तो आख़िर किससे? आत्मा अमर है मगर अदृश्य भी है । माना कि परमात्मा कुछ है और आत्मा परम से नश्वर शरीर और फिर विराट में विलीन होने की प्रक्रिया में भटकाव की ऐसी कड़ी हो सकती है जो जीवन और मृत्यु के यथार्थ का अहसास चैतन्य शरीर याकि शरीरों को कराती रहती है मगर

Nov 10, 2009

भारत का चालीसवाँ अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव-2009


चालीसवाँ भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव (IFFI-2009) गोवा में 23 नवम्बर 2009 से 03 दिसम्बर 2009 तक आयोजित किया जाएगा। फ़िल्म समारोह निदेशालय द्वारा आयोजित इस समारोह में 50 से ज्यादा देशों की 200 से अधिक चुनिंदा फिल्मों का प्रदर्शन किया जाएगा। निदेशालय द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार इस समारोह में लगभग 6000 फ़िल्म प्रतिनिधियों के भाग लेने की संभावना है। प्रतियोगी वर्ग में पुरस्कृत फिल्मो के लिए एक लाख चालीस हज़ार डॉलर की पुरस्कार राशि रखी गई है ।
प्रतिनिधि के रूप में पंजीकरण की अन्तिम तिथि 10 नवम्बर है जबकि मीडिया श्रेणी में 15 नवम्बर तक पंजीकरण कराया जा सकता है। पंजीकरण की ऑनलाइन सुविधा http://www.iffigoa.org/ तथा pib.nic.in पर उपलब्ध है।
हिन्दी सबके लिए के पाठकों के लिए हमारी पूरी-पूरी कोशिश रहेगी कि इस समारोह में प्रदर्शित होने वाली फिल्मों की ताजातरीन समीक्षाएँ तथा अन्य झलकियाँ समारोह के समय प्रतिदिन उपलब्ध कराई जा सकें।
-अजय मलिक
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Nov 6, 2009

लीला प्रबोध समीक्षा दल के सदस्य सी-डेक में 1995


बैठे हुए बाएँ से श्री दिनेश चंद, श्रीमती सीमा देशपांडे और अजय मलिक
खड़े हुए दाएँ से कैप्टन शर्मा एवं अन्य

Nov 2, 2009

हमको बोलने दो

(अजय मलिक की एक नई कविता )

मैं हिंद का निवासी
हिंदी मेरी जुबान
मेरी हसरतें हैं
ये मेरा हिंदोस्तां ।

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हिंदी में गुफ़्तगू है
मथुरा व मदुरै में ।
इंगे वा कुचि-कुचि दिल्ली,
उंगे जा भई चिन्नई म ।

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तुम खल लाख खेलो ।
शत लाख दंड पेलो ।
वाणक्कम भई नमस्ते,
हिंदी म अब तमिल है ।

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एकात्म देश मेरा
हर प्राण हिंदवासी ।
हिंदी की सरहद का
नहीं कोई ओ र छोर ।

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अब छोड़ दो शगुफ़े,
बातों से बाज़ आ ओ ।
हमको बोलने दो
अब ओर न चलाओ ।

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